वृद्धावस्था उम्र का वह अहम पड़ाव है जब हमें अपने शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक और आर्थिक स्वास्थ्य की भी देखभाल करने की सख्त जरूरत होती है अन्यथा इनमें से किसी भी एक के बिगड़ने से जीवन की नौका बीच मझधार में दिशाहीन होकर डगमगाते देर नहीं लगती है।

हम अपनी मर्जी से जीवन को जीते चले जाते हैं और फिर अचानक एक दिन पता चलता है कि उम्र के उस पड़ाव पर पहुँच गये हैं जो गिनती में तो महज साठ का एक आँकड़ा होता है, मगर इस माइलस्टोन पर पहुँचते ही एक आम नागरिक कुछ खास हो जाता है और वह सहज ही ‘वरिष्ठ नागरिक’ की उपाधि पा लेता है।
वरिष्ठ नागरिक शब्द सुनने में जितना सम्मान से भरा लगता है यह और सम्मानजनक और गरिमामय हो सकता है जब इस सामाजिक प्रतिष्ठा को प्राप्त करने वाला व्यक्ति अंदर से मानसिक रूप से भी इसके लिए पहले से तैयार हो और उसने आगे के जीवनयात्रा की अच्छी तरह प्लानिंग कर ली हो। कार्ययोजना जितनी अच्छी होगी यह यात्रा उतनी ही आरामदायक और सुखद हो सकती है। अन्यथा तैयारी न होने पर या अधूरी होने पर रास्ते में जब रोड़े-पत्थर और हिचकोले के रूप में समस्यायें आयेंगी तो उन्हें पार करने में मुश्किलों का सामना भी करना पड़ सकता है।
कहने का आशय यह है कि उम्र के इस दौर में आने के बाद कई लोग ऐसा सोचते हैं कि हमने तो अपनी पूरी जिंदगी जी ली है। अब आगे की भला क्या तैयारी करनी और कैसी कार्ययोजना बनाना? जो होगा सो देखा जायेगा। उम्र भर काम कर लिया, सारे रिश्ते-नातों को सही से निभा लिया, बच्चों को सेटल कर दिया अब आगे कुछ सोचने की भला क्या जरूरत है? ऐसा ख्याल पालने वाले लोग ही वृद्धावस्था में यह कहते पाये जाते हैं कि हमारी तो कोई सुध लेने वाला ही नहीं है। स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता, कोई ठीक से देखभाल करने वाला नहीं है। पैसे की तंगी बनी रहती है, खर्चे पूरे नहीं पड़ते। बेटे-बहुओं को हमारी कोई परवाह ही नहीं रहती, इत्यादि।
अपने जीवन की बागडोर परिस्थितियों के हवाले छोड़ देने वाले व्यक्तियों की दशा कुछ ऐसी ही हो जाती है। इसके बाद वे खुद को और सबको कोसने के अलावा कुछ नहीं कर पाते। हमें आगे चलकर ऐसी किसी विषम परिस्थिति का सामना न करना पड़े इसके लिए यदि पहले से कुछ तैयारी कर ली जाये तो आगे चलकर हमें उनका सामना करने में विशेष परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। समस्यायें तो आती ही रहती है मगर मायने यह रखता है कि हम उनका सामना करने के लिए कितना तैयार हैं।
जीवन के इस मोड़ पर हमारी आगे की यात्रा भी पहले की भाँति सुखद और खुशनुमा हो इसके लिए हमें अपने तन, मन और धन इन तीनों के बेहतर तरीके से रखरखाव की जरूरत है। तीनों के स्वस्थ और सुरक्षित रहने पर जीवन की संध्याबेला का पूरा आनंद उठाया जा सकता है।
स्वस्थ तन और मन
यूँ तो स्वास्थ्य संबंधी समस्यायें ऐसी होती है जो कभी भी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। फिर भी वृद्धावस्था एक ऐसा समय होता है जब शरीर क्षीण होने लगता है और दय रोग, मधुमेह, बीपी का स्तर ऊपर या नीचे रहना या हड्डियों के जोड़ों में दर्द बने रहने जैसी आम समस्या उत्पन्न हो जाती है। इन समस्याओं के शुरूआती चरण में कई लोग इसे नजरअंदाज कर जाते हैं। डॉक्टर से मिल कर संबंधित समस्या का चिकित्सीय परामर्श लेने में छोटी-सी कोताही आगे चलकर उनके लिए और गंभीर समस्या के रूप में आकर खड़ी हो जाती है। इसलिए जब भी शरीर ऐसी किसी परेशानी का संकेत देने लगे तो उसे हल्के में न लेकर तुरंत डॉक्टर से परमर्श लेनी चाहिए।
स्वास्थ्य केवल तन के लिए ही नहीं बल्कि मन के लिए यानि मानसिक स्वास्थ्य भी बहुत जरूरी होता है। तनाव, अकेलापन, शारीरिक दुर्बलता, दोस्तों और निकट संबंधियों को खोने की यादें जैसे कारण इस आयु वर्ग मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालते हैं। इसलिए स्वस्थ तन के साथ-साथ स्वस्थ मन के लिए भी सचेष्ट रहें।
आर्थिक सुरक्षा
यद्यपि स्वास्थ्य को धन कहा गया है। लेकिन भौतिक धन का भी अपना महत्व है। विशेष कर जीवन के उस पड़ाव में जब हम शारीरिक रूप से कमजोर होने लगते हैं। और इतने सक्षम नहीं रह जाते कि कठिन परिश्रम कर जीविकोपार्जन कर सकें। इसलिए इस उम्र में आर्थिक सुरक्षा के लिए योजनाबद्ध प्रयास पहले से ही करना शुरू करें।
तन, मन और धन ये तीनों स्वस्थ पारिवारिक और सामाजिक जीवन के घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं। इसलिए अपने परिवार के सदस्यों, पड़ोसियों और मित्रों से अच्छे व्यवहार रखें। अपना स्वभाव ऐसा बनाएँ रखें कि लोग सम्मान और प्रेम से आपको हमेशा याद रख सकें।
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