
वाल्मीकि नगर, प चम्पारण, बिहार
वृद्ध जनों की सेवा करने को, हम सब आगे आएँ।
भारतीय संस्कृति के मूल्यों, को जीवन में अपनाएँ।।
वृद्ध मार्गदर्शक हम सबके, क्यों नहीं बन सकते हैं आज।
उनके बहुमूल्य अनुभवों से, रच सकते हम नया समाज।।
वृद्ध नहीं भार तुल्य हैं, हमें जिन्होंने योग्य बनाया।
हर कष्ट सह कर जिन्होंने, हम सब का भविष्य बनाया।।
जीवन भर संताप सहे वे, कभी परवाह न अपनी की।
जैसे भी रहे जिस हाल में, लाकर हमें सब खुशियाँ दी।।
धिक्कार हैं उन पूतों को, जो मात-पिता को ठोकर मारे।
हा! छोड़ जाए वृद्धाश्रम, तिल-तिल मरने को बेसहारे।।
गैरत हम में जरा भी हो तो, संकल्प लें अभी तुरंत।
माता-पिता की सेवा करते, रहेंगे हम जीवन पर्यंत॥