बुढ़ापा यकीन मानिए एक अच्छी और सुखद चीज है, यह सच है कि आपको धीरे से मंच से उतार दिया जाता है पर फिर आपको दर्शक के रूप में सबसे आरामदायक कुर्सियों पर बिठा दिया जाता है।”

फेज थ्री, शुभाश्री अपार्टमेंट
बारियातु, रांची
झारखंड
कन्फ्यूशियस ने जब यह लिखा था तब यह सोचा भी ना होगा कि बुढ़ापा में सभी को आरामदायक कुर्सियां नहीं मिल पाती। माता-पिता जिन्होंने चार बच्चों की परवरिश की, उन्हें लायक बनाया, बुजुर्ग होने पर वही अपने चार बच्चों के ऊपर भार बन जाते हैं। कई बार तो आर्थिक रूप से सुदृढ़ होते हुए भी शरीर से लाचार होने के कारण उन्हें न चाहते हुए भी संतान को बताना पड़ता है कि वे उनके पालक रहे हैं अन्यथा उनको वृद्ध आश्रम की शरण लेनी पड़ती है। वैसे बुजुर्ग जो आर्थिक दृष्टि से सक्षम नहीं है, बच्चे सही और समझदार हैं तो ठीक अन्यथा ईश्वर ही उनका मालिक होता है।
बुजुर्गों की ऐसी स्थिति भारत जैसे देश में भी देखने को मिल रही है, जहां परिवार और पारिवारिक मूल्यों की परंपरा रही है। कभी यहां संयुक्त परिवार थे, परिवार का एक मुखिया होता था और उसके अनुसार पूरा परिवार चलता था।
लेकिन अब परिस्थितियां बदलीं, अच्छी पढ़ाई लिखाई, अच्छी नौकरी, अच्छी कमाई के लिए बच्चे घर से निकलते गए। संयुक्त परिवार एकल परिवार में तब्दील हो गया। अभी ज्यादातर घरों में जिनके बच्चे सेटल हैं, वहां घर में बुजुर्ग बच गए हैं। अब कुछ तो परिस्थितियां ऐसी हैं और लोगों की भावनाएं बदल गई कि सुखी संपन्न बुजुर्ग भी वृद्धआश्रम की तरफ कदम बढ़ाने लगे हैं। ऐसी स्थितियां क्यों आ रही हैं, इस पर सोचने विचारने की जरूरत है इसके लिए नई पीढ़ी को दोष देकर पीछे नहीं हुआ जा सकता है। इसके लिए दोनों पीढ़ी जिम्मेवार है।
1.पहले की तरह लोगों में एडजस्टमेंट और सहिष्णुता नहीं रही।
2. आज हर कोई अपने अनुसार, अपनी कमाई के अनुसार जीना चाहता है। अब सबके साथ मिलकर रहना नहीं चाहते। उनके साथ उनका स्वार्थ जुड़ा होता है। इसलिए एक शहर में रहकर भी बच्चे अपनी अपनी गृहस्थी में स्वतंत्र रहना चाहते हैं।
3. कुछ बुजुर्ग अभिभावक अपने विचार बदलना नहीं चाहते, उनके मन में घर के हेड होने वाली भावना बनी रहती है। उनके विचार से उनके बेटे बहू से ही टकराहट होने लगती है और अकेले रहना उनकी लाचारी हो जाती है।
4. आज ज्यादातर बच्चे घर से दूर नौकरी कर रहे हैं, कुछ देश के बाहर भी हैं तो माता-पिता चाहकर भी साथ नहीं रह पाते।
ये सारी कुछ बातें हैं, जिनके कारण संयुक्त परिवार अब एकल परिवार में तब्दील हो रहे हैं और फिर बुजुर्ग हो रहे माता-पिता अकेले रहने को मजबूर हैं। लेकिन जहां बुजुर्ग अपने बच्चों के साथ रहते हैं, वे खुशहाल ही हो जरुरी नहीं। आए दिन बुजुर्गों की उपेक्षा की ख़बरें सुनने में आती हैं, किसी ने बूढ़े मां-बाप को स्टेशन पर छोड़ दिया तो किसी ने मंदिर में। उन्हीं के बनाए मकान में रहते हैं, लेकिन उनको बेघर कर दिया। उन्हीं के पेंशन से मजे करते हैं पर उनको भूखे छोड़ देते हैं। ज़िन्दगी भर साफ सफाई से रहने वाले को किनारे गंदे से कमरे और गंदे चादर पर सोने को मजबूर कर दिया। ये सारी बनी बनाई बातें नहीं बल्कि हमारे आसपास घटित होने वाली हैं और बेहद शर्मनाक हैं।

ऐसे में यह सवाल उठता है कि व्यक्ति अपनी वृद्धावस्था को खुशहाली से कैसे जिए? ऐसा तभी हो सकता है जब अपने युवावस्था से ही वृद्धावस्था की योजनाएं बनाई जाएं। भावावेश में कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। अपने जीवन काल में घर जमीन और अपनी सम्पत्ति पर बच्चों को पूरा अधिकार नहीं देना चाहिए। बुजुर्गों को सुखपूर्वक जीने के लिए कानून की तरफ से कई प्रावधान हैं जिसकी जानकारी होनी चाहिए, जैसे-
1. माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण और कल्याण कानून 2007 (मेंटेनेंस एंड वेलफेयर का पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस एक्ट 2007) – यह कानून 2007 में पारित किया गया, यह विशेष रूप से सताए जा रहे बुजुर्गों के लिए, उनकी देखभाल के लिए, उनके स्वास्थ्य उनके रहने खाने जैसी बुनियादी जरूरत की व्यवस्था करना अनिवार्य है।
2. अगर बुजुर्ग अपनी संपत्ति ट्रांसफर कर चुका है और वयस्क बच्चे देखभाल नहीं कर रहे तो संपत्ति ट्रांसफर रद्द हो सकता है।
3. जिन माता-पिता या अभिभावक के पास अपनी आय अथवा सम्पत्ति नहीं, अपना भरण पोषण खुद करने में असमर्थ हैं, वे अपने वयस्क बच्चों और संबंधितों से भरण पोषण का दावा कर सकते हैं।
4. अधिकरण द्वारा मासिक भरण पोषण हेतु अधिकतम राशि ₹10,000 प्रति माह तक का आदेश दिया जा सकता है।
5. वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा एवं परित्याग एक संज्ञेय अपराध है जिसके लिए ₹5000 का जुर्माना या तीन माह की सजा दोनों हो सकते हैं।
5. सभी सरकारी चिकित्सालयों में वरिष्ठ नागरिकों को बेड दिया जाएगा और उनके स्वास्थ्य का प्रबंध किया जाएगा।
वास्तव में बुजुर्गों को सुखपूर्वक एवं सम्मान से जीने का पूरा अधिकार है, इसके लिए उन्हें अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए, सजग और जागरूक होना चाहिए और समय के साथ चलने की आदत डालनी चाहिए। मार्क ट्वेन की कहीं बातों पर गौर करना चाहिए “बूढ़ा होने के बारे में शिकायत न करें, यह एक ऐसा विशेष अधिकार है जिससे बहुत सारे लोग वंचित रह जाते हैं।”
*****