
गुरुग्राम, हरियाणा
मानव जीवन के चार चरण हैं। या आप कह सकते हैं संपूर्ण जीवन को चार अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है 1. बचपन 2. किशोरावस्था 3. युवावस्था एवं 4. वृद्धावस्था।
हमारे पूर्वजों ने “जीवेम् शरद: शतम्” अर्थात् सौ वर्ष का जीवन काल माना था इसलिए प्रत्येक अवस्था के लिए लगभग 25 वर्ष का समय निर्धारित किया था। परंतु अब इतने वर्षो तक जीना केवल एक परिकल्पना मात्र रह गया है क्योंकि बहुत कम व्यक्ति की इस आयु तक पहुंच पाते हैं।
आजकल लगभग 60 वर्ष के आसपास व्यक्ति सेवानिवृत्त हो जाता है। लेकिन सेवानिवृत्त होने का अर्थ यह नहीं कि आप जीवन की सभी गतिविधियों से मुख मोड़ ले। कुछ व्यक्ति बहुत जल्दी ही अपने आप को बड़े बुजुर्गों के बीच गिनने लगते हैं और अनेक प्रकार के क्रियाकलापों से परहेज करते हैं।
मेरी एक मित्र है, मिसेज गुप्ता। आयु केवल 62 वर्ष। घर में बहू के आते ही उन्होंने घर का सब काम काज़ छोड़ दिया और पूरा दिन पलंग पर पसरी रहती। सुना है निष्क्रियता के कारण उन्हें शुगर और वजन बढ़ने के कारण घुटनों में दर्द की शिकायत रहने लग गई है। दूसरी ओर मेरी एक और मित्र मिसेज कोहली हैं। वह भी लगभग इसी उम्र की है। वह सुबह-शाम पार्क में सैर करती है, थोड़ा बहुत कसरत भी करती है। घर के कामों में भी यथासंभव बहू को सहयोग देती है और शाम को कामवाली बाईयों के बच्चों को पढ़ाती है। सुना है वह संगीत भी सीख रही है इस उम्र में।
ऐसी गतिशीलता, ऐसी सोच आपको स्वस्थ रखने के साथ-साथ बोर नही होने देती, न ही बढ़ती उम्र की चिंता को पास फटकने देती है।
यदि संभव हो तो इस उम्र में भी अपने आप को कुछ लक्ष्य दें या जीवन का कुछ उद्देश्य रखें और निरंतर उस उद्देश्य की ओर यथाशक्ति बढ़ते रहें। उम्र के साथ स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियां आयेंगी उन्हें स्वीकार करते हुए उनका उपचार करवायें लेकिन चिंता न करें।
वृद्धावस्था में हमारे पास पर्याप्त समय होता है। हम इस समय का सदुपयोग अनेक प्रकार से कर सकते है। यथाशक्ति गरीबों की सहायता करके, कोई एन०जी०ओ० के साथ जुड़कर समाज सेवा करके।
यही वह समय है जब आप अपनी किसी हॉबी यानि शौक का आनंद उठा सकते है जो आप धनोपार्जन या अन्य व्यस्तताओं के कारण पहले नही कर पाये।
ऐसा न सोचे कि आप अब कुछ नया नही सीख सकते, वियतनाम जैसे देश में साठ, पैसठ साल के नागरिक भी आपनी जीविका को समय देने के बाद, शाम को पढ़ाई करते है। ऐसा अनेक देशों में होता है।
आपकी सोच सकारात्मक होनी चाहिए और आपको सकारात्मक लोगों के बीच उठते-बैठते रहना चाहिए इस अवस्था में आपकी मित्र मंडली आपका बहुत बड़ा संबल बन सकती है अतः मित्र अवश्य बनाएं और उनके साथ समय बिताएं और खिलखिलाये। यदि आप अपने आपको सकारात्मक रखेंगे और अपने आप में खुश रहने का प्रयत्न करेंगे तो निश्चय ही आपको वृद्धावस्था बोझ नहीं लगेगी।
अपने बच्चों तथा युवा पीढ़ी के साथ भी अवश्य अपना संवाद रखें और लेकिन उनसे अपेक्षाएं कम रखें। जहां तक संभव हो अपना काम स्वयं करें। इसके विपरीत यदि आप अपने बच्चों से या और लोगों से बहुत अधिक अपेक्षाएं रखेंगे और दूसरों पर निर्भर रहेगें, सदा सहानुभूति की अपेक्षा करेंगे। अपने बुढ़ापे और बीमारियों का राग अलापते रहेगे तो निराशा ही हाथ लगेगी, इसलिए जहां तक संभव हो यथाशक्ति अपना कार्य स्वयं करें। कहीं सहायता की आवश्यकता पड़े तो विनम्रतापूर्वक सहायता मांगे।
युवा पीढ़ी को समझने का प्रयत्न करे। केवल उन्हें भाषण न देते रहे। वह नही सुनेंगे। इतने वर्षों में समाज ने आपको बहुत कुछ दिया है। अब समय है आप भी यथाशक्ति एवं यथा सामर्थ्य समाज को कुछ दे। कुछ अच्छा करें। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समाज के लिए उपयोगी बने।
वृद्धावस्था का भी भरपूर आनन्द उठाये। जीवन की इस अवस्था को भी उत्सव की भांति मनायें।