चिड़चिड़ापन, झल्लाहट, क्रोध, कहीं मन नहीं लगना, उत्साह की कमी, दूसरों की खुशी के प्रति उदासीन रहना, खिन्नता इत्यादि व्यक्ति का स्वाभाविक गुण होता है, जो लगभग सभी व्यक्तियों में होता है, लेकिन इनकी मात्रा प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न होती है। यहाँ तक कि एक ही व्यक्ति में समय, स्थान, परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग हो सकता है। जैसे अच्छा मूड होने पर हम जिन चीजों को हँस कर टाल देते हैं कई बार मूड खराब होने पर हम उन्हीं चीजों से झल्ला जाते हैं। हो सकता है बच्चों का शोर आपको बहुत अच्छा लगता हो लेकिन अगर आप ऑफिस से थक कर घर लौटे हों, सिरदर्द हो, तब यही शोर आपको अच्छा नहीं लगता है। ठीक यही स्थिति शरीर की विभिन्न अवस्थाओं के साथ भी हो सकती है। अर्थात युवावस्था में बहुत ही शांत और खुशमिजाज़ व्यक्ति भी उम्र अधिक होने पर वह चिड़चिड़ा हो सकता है, बात-बात पर झल्ला सकता है। ऐसी ही मानसिक अवस्था के लिए कई लोग “बुढ़ापे में सठिया जाना” जैसे वाक्य भी बोल जाते हैं, जो कि उचित नहीं है।
चिड़चिड़ापन, झल्लाहट, क्रोध इत्यादि उपर्युक्त अवस्था यद्यपि बच्चों और युवाओं में भी होता है लेकिन कई शांतचित्त व्यक्ति भी उम्र अधिक होने पर छोटी-छोटी बातों में झल्ला जाते हैं। उनके स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है। कई बार इसका स्तर इतना बढ़ जाता है कि उनके परिवार वालों को परेशानी होने लगती है। उनकी देखभाल करने वाले लोग भी धीरे-धीरे उनसे बचने लगते हैं। इससे वे और भी अकेले होने लगते हैं। यह अवसाद जैसे मानसिक बीमारी का रूप भी ले सकता है। अपने बुजुर्गों को इन स्थितियों से बचाने के लिए उनके स्वभाव में होने वाले परिवर्तन के कारणों के समझना होगा। निम्नलिखित कारण सामान्यतया इसके पीछे होते हैं:
1. शारीरिक दुर्बलता और बीमारियाँ
उम्र बढ्ने पर शरीर दुर्बल होने लगता है। कई तरह की बीमारियाँ भी घेर लेती हैं। देखने, सुनने, खाने आदि की क्षमता कम होने लगती है। लगातार शक्तिहीनता, असुविधा, दर्द एवं तकलीफ़ों का अनुभव व्यक्ति को खिन्न बना देता है। छोटी बीमारी भी अगर लगातार बनी रहे तो मजबूत-से-मजबूत व्यक्ति भी धैर्य खोने लगते हैं। दैनिक कार्यों के लिए भी वे दूसरों पर निर्भर रहने लगते हैं। इससे उनमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।
2. मानसिक बीमारियाँ
अनेक कारणों से इस समय अवसाद, दुश्चिंता, अनिद्रा, अलझाइमर, पार्किंसन, डेमेंशिया इत्यादि अन्य अनेक मानसिक बीमारियाँ भी होने लगती है।
3. भावनात्मक कारण
अपनों को खोना, अपने अनुपयोगी होने का अनुभव इत्यादि सामान्य कारणों के अलावा अगर परिवार में कोई दुखद घटना हुई हो तो इस सबकी दुखद स्मृतियाँ मस्तिष्क में रहती हैं। पुरानी स्मृतियाँ जब उनके कई अपने लोग उनके साथ थे और वे बहुत से लोगों के लिए जरूरी थे, उनकी यादों में बार-बार आते हैं।
4. सामाजिक जुड़ाव कम हो जाना
शारीरिक या मानसिक क्षमता कम हो जाने के कारण घर से बाहर निकलना और लोगों से मिलना-जुलना कम हो जाता है। समय के साथ-साथ इष्ट-मित्र भी कम होने लगते हैं। सेवानिवृति या व्यवसाय बच्चों द्वारा संभाल लेने के कारण बाहर निकलने की कोई बाध्यता भी नहीं रह जाती है। धीरे-धीरे एक आलसपन आने लगता है। वे अपने आप में ही सिमट जाते हैं। लोगों से मिलने-जुलने और बाते करने की इच्छा ही नहीं होती। वे आराम से घर में ही पड़े रहना चाहते हैं। ऐसे स्थिति में बच्चे भी उन्हें उसी तरह रहने देना चाहते हैं। कुछ बच्चे स्वयं भी नहीं चाहते कि उनके बुजुर्ग घर से बाहर ज्यादा जाए क्योंकि उन्हें भय होता है कि वे बाहर जाकर घर के व्यक्तिगत बातों को भी साझा करेंगे।
5. गृहकलह
घर में तनाव का माहौल तो किसी के लिए अच्छा नहीं होता है क्योंकि घर का दूसरा नाम आराम भी है, अगर वहाँ भी शरीर और मन को आराम नहीं मिले, तो व्यक्ति आरामहीन तो होगा ही। लेकिन बच्चे और बुजुर्गों के लिए सबसे बुरा होता है। ये दोनों दूसरों पर निर्भर और दुर्बल होते हैं। अगर बच्चे आपस में ही लड़े, माँ-बाप पर एक-दूसरे के साथ पक्षपात करने का आरोप लगाए, तो वैसी स्थिति माँ-बाप के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से कठिन हो जाता है। ऐसे माहौल में उनकी उचित देखभाल नहीं हो पाती है।
6. अकेलापन का अनुभव
कुछ बुजुर्ग बातचीत करने में भी कठिनाई अनुभव करने लगते हैं। अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए उपयुक्त शब्दों का चयन नहीं कर पाते। उनके आसपास के युवा और बच्चे अपने-अपने कामों में व्यस्त रहते हैं। हमउम्र लोग उनकी तरह समस्याओं से ही जूझ रहे होते हैं। अपने से बड़े एवं अपने उम्र के लोगों के दुनिया से जाते हुए देखते हैं। दैनिक जीवन में उपयोग आने वाले नए तकनीकों को सीखने का आत्मविश्वास उनमें प्रायः नहीं होता है। इन सब कारणों से वे अपने को अलग-थलग अनुभव करने लगते हैं।
7. परिवारजनों के कुछ गलत तरीके
कई बार परिवार के सदस्य भी अनजाने में भी कुछ गलत तरीके अपना लेते हैं। उदाहरण के लिए; बच्चे कार खरीद कर पिता को दिखाए, लेकिन उसे पसंद करने और खरीदने में उनकी कोई भूमिका नहीं हो; अपने बुजुर्गों को उनकी मर्जी के अनुसार घर में ही रहने दें, उन्हें कहीं बाहर आने-जाने या लोगों से मिलने-जुलने के लिए प्रोत्साहित नहीं करें; उनके चिड़चिड़ाहट पर उसी तरह की प्रतिक्रिया दें; इत्यादि।
इन विभिन्न कारणों से बुजुर्ग खिन्न और नकारात्मक दृष्टिकोण वाले होने लगते हैं। वे अपने आसपास के लोगों, भले ही उनके बच्चे ही क्यों न हो, के खुशियों से भी अपने को जोड़ नहीं पाते हैं। छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित हो जाते हैं। यह क्रोध उनके आंतरिक खिन्नता की अभिव्यक्ति होती है। ऐसी परिस्थितियों में बुजुर्गों के व्यवहार में बहुत परिवर्तन देखने में आता है। उनका मूड बहुत तेजी से बदलता है। चिड़चिड़ापन, झल्लाहट, क्रोध, कहीं मन नहीं लगना, उत्साह की कमी, दूसरों की खुशी के प्रति उदासीन रहना या उससे चिढ़ना, खिन्नता, निराशा, हठ इत्यादि उनके स्वभाव के अंग बन जाते हैं।
अपने बुजुर्गों को एक खुश और गरिमामय जीवन देने के लिए उनके प्रति संवेदना, प्रेम, धैर्य और अपने से जोड़ने का व्यवहार रखें जिससे पारिवारिक एवं सामाजिक संबंध स्वस्थ हो। प्रतिदिन उनके साथ कुछ-न-कुछ समय अवश्य बिताएँ। उनसे उनके जीवन से जुड़े आशावादी बातों पर चर्चा करें।
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