मुझे ओशो की निम्नलिखित पंक्तियां बहुत प्रभावित करती हैं। “तुम आज क्या हो? अगर तुम नाच रहे हो, तो तुमने आने वाले कल के लिए नाच दे दिया। अगर तुम प्रमुदित हो, प्रफुल्लित हो, तो कल का फूल खिलने ही लगा। क्योंकि जिस फूल को कल खिलना है, उसकी कली आज ही तैयार हो रही है। प्रतिपल तुम अगला पल पैदा कर रहे हो। प्रतिक्षण अगला क्षण तुम्हारे भीतर निर्मित हो रहा है, तैयार हो रहा है। तुम स्रष्टा हो। तुम अपने समय को खुद पैदा करते हो।
इसलिए मैं तो कहता हूँ, आज जीओ। लेकिन तुम्हें लगता है वर्तमान जीने जैसा नहीं लगता। अगर वर्तमान जीने जैसा नहीं लगता, तो कल भी तो वर्तमान होकर ही आएगा। फिर वह भी जीने जैसा नहीं लगेगा। परसों भी वर्तमान होकर ही आएगा, वह भी जीने जैसा नहीं लगेगा। तो इसी को तो मैं आत्मघात करना कहता हूँ। तब तो आत्महत्या कर रहे हो, जी नहीं रहे हो।”
जीने का कोई और उपाय नहीं है। आज ही है, और आज ही जीना है। जीने जैसा लगे या न लगे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जीने का और कोई ढंग है ही नहीं। जीना तो यहीं होगा। कल के भुलावे में मत पड़ो। कल के भुलावों ने बहुतों को डुबाया है।
आज जीओ। यह क्षण खाली न चला जाए। यह क्षण अवसर है। इसे तुम ऐसे ही मत गंवा देना। कुछ बना लो इसका। कुछ रस ले लो इसमें। कुछ भोग लो इसे। कुछ पहचान लो इसे। इसका स्वाद उतर जाने दो तुम्हारे प्राणों में। यह ऐसा ही न चला जाए। क्योंकि अगर समय ऐसा ही जाता है तो समय को ऐसे ही चले जाने देने की आदत मजबूत होती चली जाती है। फिर धीरे-धीरे समय को गंवाना तुम्हारी प्रकृति हो जाती है। भोगो इसे। चूसो इस क्षण को, निचोड़ लो इसको पूरा, इसका रस जरा भी छूट न जाए। यही परमात्मा के प्रति धन्यवाद है। क्योंकि उसने तुम्हें अवसर दिया, जीवन दिया, और तुमने ऐसे ही गंवा दिया। परमात्मा तुमसे यह न पूछेगा…
यहूदियों की किताब है– तालमुद। बड़ी अनूठी किताब है। दुनिया में कोई धर्मशास्त्र वैसा नहीं। तालमुद
कहती है कि परमात्मा तुमसे यह न पूछेगा कि तुमने कौन-कौन सी गलतियां कीं। गलतियों का वह हिसाब रखता ही नहीं, बड़ा दिल है। परमात्मा तुमसे पूछेगा, तुम्हें इतने सुख के अवसर दिए तुमने भोगे क्यों नहीं? गलतियों की कौन फिकर रखता है? भूल-चूक का कौन हिसाब रखता है? वह तुमसे पूछेगा, इतने अवसर दिए सुख के, तुमने भोगे क्यों नहीं? तालमुद कहती है, एक ही पाप है जीवन में, और वह है जीवन के अवसरों को बिना भोगे गुजर जाने देना। जब तुम आनंदित हो सकते थे, आनंदित न हुए। जब गीत गा सकते थे, गीत न गाया। सदा कल पर टालते रहे, स्थगित करते रहे।
स्थगित करने वाला आदमी जीएगा कब? कैसे जीएगा? स्थगित करना ही तुम्हारे जीवन की शैली हो जाती है। बच्चे थे तब जवानी पर छोड़ा, जवान हो तब बुढ़ापे पर छोड़ोगे। और बुढ़ापे में लोग हैं, वे अगले जनम पर छोड़ रहे हैं। वे कह रहे हैं, परलोक में देखेंगे।
यही लोक है एकमात्र। और यही क्षण है। सत्य का यही क्षण है। बाकी सब झूठ है। मन का जाल है। लेकिन अगर तुम्हें अच्छा लगता है, तुम्हारी मर्जी। तुम्हें अच्छा लगता हो, तो मैं कौन हूं बाधा देने वाला? तुम सपने देखो। कभी न कभी तुम जागोगे, तब रोओगे, पछताओगे। तब तुम पछताओगे कि इतना समय यूं ही गंवाया। और ध्यान रखना जीवन में जितना दुख भर लोगे, जितने आंसू घने कर लोगे, जितना पछतावा हो जाएगा, उतना ही कठिन हो जाता है रोकना फिर दुख को, आंसुओं को।
इसी प्रकार की एक बात और याद आ रही है कहीं पढ़ी थी। छोटी सी कहानी: एक पानी के जहाज पर 90 वर्षीय जर्मन व्यक्ति पूरी तन्मयता से चीनी भाषा सीख रहा था चीनी भाषा चित्रात्मक भाषा है और उसमें करीब 5000 शब्द होते हैं। उस व्यक्ति को सीखते देखकर एक 30 वर्षीय युवक ने कहा आप यह जो भाषा सीख रहे हैं आपको सीखने में कितना समय लगेगा तब तक क्या मृत्यु नहीं आ जाएगी? वह व्यक्ति हंसकर बोला कल किसने देखा है तो मैं कल की परवाह क्यों करूं? मैं अपने काम से काम रखता हूँ और इस जीवन में मुझे जो अच्छा लगता है मैं करता हूँ। यह जो अपने मन का करना है बस यही तो जीवन है जब मैं भरपूर जीवन जी रहा हूँ तो मैं मृत्यु की कल्पना भी क्यों करूं? हम अपने विचारों से ही जवान और बूढ़े भी होते हैं। उस वृद्ध के विचार सुन कर वह युवक शर्मिंदा हो गया।
वृद्धावस्था में सबसे अधिक आवश्यकता इस बात की होती है कि हम अपना कोई शौक जीवित रख पाएं । जो अब तक नहीं कर पाए वह कर सकें, मैंने कई लोगों को देखा है कि वह अगर पढ़ लिख नहीं पाते तो लेटे-लेटे या बैठे हुए ऑडियोबुक्स सुनते हैं। यही वह जीवन काल का स्वर्णिम अवसर है जब हमारे पास समय भी होता है और थोड़ी सी जमा पूंजी भी जिसे हम अपने ऊपर खर्च कर सकते हैं।
चाहे वह किसी फिजियोथैरेपिस्ट पर खर्च किया जाए अथवा अपनी मनपसंद जगह को घूमने में खर्च करें। पुराने दोस्तों से मिलने बात करने का इससे अच्छा अवसर कब मिलेगा?
रही बात शरीर की वह तो जिस दिन से जन्म लिया पुराना ही हो रहा है फिर इसकी क्या चिंता करनी है? है ना सही बात।