वृद्धावस्था की डगर कोमल मगर

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वृद्धावस्था एक धीरे-धीरे आने वाली अवस्था है जो कि स्वभाविक व प्राकृतिक घटना है। वृद्ध का शाब्दिक अर्थ है बढ़ा हुआ, पका हुआ, परिपक्व। वृद्धावस्था में शारीरिक परिवर्तन के साथ-साथ मानसिक परिवर्तन भी होते हैं जिसके प्रभाव से वृद्धों की स्वाद इंद्रियों पर प्रभाव पड़ता है। जीवन की सभी अवस्थाओं में से वृद्धावस्था एक ऐसी जटिल अवस्था है जिसमें व्यक्ति विशेष परिस्थितियों से गुजरता है। जैसे आँखों की ज्योति कम होना, कान से कम सुनाई देना तथा किसी भी कार्य को करने में काफी समय लगना। इसका कारण उसमें कार्यक्षमता की धीरे-धीरे कमी होना है। वृद्धावस्था में शरीर का निर्माण करने वाले मांस तंतु कम बनते हैं।

डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
गणेश नगर, तिलक नगर, दिल्ली

इसके अलावा वृद्धावस्था में शरीर में कोलेजन में वृद्धि के कारण शरीर के लचीलेपन में कमी आ जाती है। त्वचा में झुर्रियाँ पड़ने लगती हैं। जोड़ों में दरारें पड़ जाती हैं। कई वृद्धों का वजन कम होते देखा गया है तो कई का वजन बढ़ जाता है।

अकेलापन एक स्वीकार्य सामाजिक नेटवर्क की अनुपस्थिति को संदर्भित करता है, अर्थात, मित्रों और परिचितों का एक व्यापक समूह जो अपनेपन, साहचर्य और एक समुदाय का सदस्य होने की भावना प्रदान कर सकता है; जबकि भावनात्मक अकेलापन किसी के जीवन में किसी लगाव के व्यक्ति और किसी की ओर मुड़ने के अभाव को संदर्भित करता है। अकेलेपन पर यह परिप्रेक्ष्य इस धारणा पर आधारित है कि विभिन्न प्रकार के रिश्ते अलग-अलग, कमोबेश अद्वितीय कार्य करते हैं।

वृद्धावस्था में शारीरिक परिवर्तन के साथ-साथ मानसिक परिवर्तन भी होते हैं, जिसके प्रभाव से वृद्धों की स्वाद इंद्रियों पर प्रभाव पड़ता है। इससे उन्हें कई भोज्य पदार्थ अच्छे नहीं लगते हैं। भूख में कमी या अधिकता तथा पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है। इन सबके अलावा वृद्ध व्यक्तियों में संवेगात्मक भावों की भी कमी होने लगी है जबकि सामाजिक जुड़ाव को वृद्ध लोगों के लिए सकारात्मक स्वास्थ्य और सामाजिक परिणामों के प्रमुख प्रवर्तक के रूप में घोषित किया गया है। प्रशांत, माओरी, एशियाई और न्यूजीलैंड यूरोपीय वृद्ध वयस्कों के एक विविध समूह के साथ एक अध्ययन किया गया। अध्ययन का निष्कर्ष यह पता लगाता है कि सामाजिक जुड़ाव पर चर्चा करते समय वृद्ध लोगों के लिए क्या मायने रखता है? हम 44 वृद्ध वयस्कों के साथ व्यक्तिगत, गहन साक्षात्कार और 32 वृद्ध वयस्कों के तीन समूह साक्षात्कारों से निष्कर्ष निकालते हैं। विषयगत और कथात्मक विश्लेषणों का उपयोग करके डेटा का विश्लेषण किया गया। पहचाने गए तीन विषय थे: घर से बाहर निकलना, जुड़ने की क्षमता और बोझ की भावनाएँ। सामाजिक जुड़ाव का मूल तत्व प्रतिभागियों की आपसी सम्मान के आधार पर रिश्तों को बढ़ावा देने में सक्षम साधन संपन्न एजेंटों के रूप में पहचाने जाने की इच्छा थी। सामाजिक जुड़ाव की संकल्पना बहु-स्तरीय के रूप में की गई थी: पारस्परिक संबंधों के साथ-साथ पड़ोस और व्यापक समाज से भी संबंधित। इन समानताओं के साथ-साथ हम महत्वपूर्ण अंतरों पर भी चर्चा करते हैं। प्रतिभागियों ने समान सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के लोगों के साथ मेलजोल बढ़ाना पसंद किया, जहां वे सामान्य रीति-रिवाजों और ज्ञान को साझा करते थे। यह उस संदर्भ में है जहां नस्लवाद, गरीबी और असमानताएं पहले से ही अल्पसंख्यक प्रतिभागियों की सामाजिक जुड़ाव की भावना को स्पष्ट रूप से बाधित करती हैं। सामाजिक जुड़ाव में सुधार के प्रमुख संरचनात्मक तरीकों में उन कारकों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए जो कनेक्शन के स्तरों के बीच सामंजस्य को सक्षम करते हैं, जिसमें सुलभ सार्वजनिक परिवहन, रहने योग्य पेंशन और सांस्कृतिक विविधता की समावेशिता के साथ स्थिर पड़ोस शामिल हैं।

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आधुनिक समाज में परिवार से वृद्ध धीरे-धीरे गायब होने लगे है। उनके लिए घरों में जगह नहीं है जैसे पहले हुआ करती थी। यही कारण है कि आज वृद्धों की समस्या ने भारत जैसे विकासशील समाज में विकराल स्वरूप धारण किया है। अत्याधिक खाली समय और अकेलापन उनमें तनाव की स्थितियाँ पैदा करता है।

उनमें चिड़चिड़ापन, भूलना जैसे समस्याओं के निर्माण में सहायक वातावरण पैदा होने लगता है। 

कई बार देखा गया है कि जिन वृद्धों के पास धनसंपत्ति है, तब तक उनकी अच्छे से देखभाल हो रही है। साथ में यह भी देखा गया है कि माता-पिता की धन-संपत्ति हथियाने के लिए उनके रोजमर्रा के जीवन को नरक बना दिया जाता है जिससे हताश होकर कई वृद्ध अपने घरों को त्यागने पर मजबूर हो जाते हैं। दूसरी तरफ ऐसे कई सारे मामले दिखते हैं जिसमें वित्तीय कमी के कारण स्वास्थ्य सेवाओं से उन्हें वंचित रहना पड़ता है। 

वृद्धावस्था स्वयं में अवमूल्यन की अवस्था होती है जिसके कारण इस अवस्था में व्यक्ति का अवमूल्यन बढ़ जाता है। ऐसे में व्यक्ति का स्वयं के प्रति आत्म अवमूल्यन भी बढ़ जाता है। क्या था और क्या हुआ जैसे प्रश्नों से यह अवस्था लगातार गहराती जाती है, जिससे शरीर और बुद्धि के बीच तादात्म्य नहीं बैठ पाता और समस्याएँ सर उठाने लगती है, जैसे- लगातार बडबडाना, बेमतलब की बातें करना, आदि समस्याएँ इसमें शामिल हैं। साथी की मृत्यु हो जाने के बाद इन समस्याओं में और भी बढ़ोतरी होने लगती है।

हैप्पीनेस यानी प्रसन्नता या आनंद ही है, जो मानव जीवन को सम्पूर्ण बनाता है। जब हम लोग बच्चे होते हैं तो हर छोटी से छोटी बात में प्रसन्नता ढूंढ लेते हैं। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है हममें हर बात में तनाव महसूस करने की आदत बनती जाती है।

उम्र बढ़ने के बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण रखने से हमें अधिक संतुष्टि भरा जीवन जीने में मदद मिल सकती है।

लोग अक्सर बुढ़ापे को नकारात्मक दृष्टिकोण से सोचते हैं; जैसे बुढ़ापे का मतलब लोगों के लिए बीमारी, दर्द, कमजोर शरीर, कमज़ोर याददाश्त और संभवतः क्रोधी होना होता है।

खुशी के पल को हमें वृद्धावस्था में स्वयं ही ढूंढ ना पड़ था है वृद्धावस्था एक ऐसी अवस्था है जब हमारी अधिकतर जिम्मेदारियां पूरी हो चुकी होती हैं वृद्धावस्था आराम से बैठने और अपने जीवन का आनंद लेने के लिए एक अच्छा समय है। इस समय में आपको उन सभी चीजों को करने की स्वतंत्रता है जो आप करना चाहते हैं।

उम्र बढ़ने पर भी यदि आप एक स्वस्थ शरीर वाले हैं तो निश्चित तौर पर इसमें आपके आनंदंदायक जीवन  का एक महत्वपूर्ण योगदान है। शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि प्रसन्न लोग अधिक मजबूत और फिट होते हैं। उचित स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए उचित आहार, नियमित व्यायाम, नियमित मेडिकल चेक-अप और अपने आप को हमेशा खुशहाल बनाये रखना चाहिए।

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एक खुशहाल बुजुर्ग अपने को तो स्वस्थ रखता ही है साथ ही वह अन्य लोगों को भी प्रेरणा देता है। यदि आप भी एक खुशहाल व्यक्तित्व चाहते हैं तो उसकी कुछ टिप्स इस प्रकार हैं –

निरर्थक सोच विचार से दूर रहें

कुछ ऐसी बातें जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है उन पर सोच विचार करते रहना निरर्थक है। ऐसे बातों से दूर रहने के लिए अपने को किसी सकारात्मक कार्य में व्यस्त रखें।

निन्दात्मक व्यक्तित्व से बचें क्योंकि आज युवा पीढ़ी अपनी निंदा कभी नहीं सुन सकती। निंदा से हमें कुछ देर की ख़ुशी तो मिल सकती है लेकिन जब हम निरंतर निंदा करते रहते हैं तो इससे हमारी ऊर्जा नष्ट होती है। इसके कारण हम अपने अंदर क्रोध बढ़ा सकते हैं जो हमें शारीरिक नुकसान भी पहुंचा सकता है।

जिस दिन हम अपने में मस्त रहना सीख लेंगे उस दिन खुशियां द्वार पर दस्तक दे देगी।

इस आयु में हो सकता है की हमारे घर के युवा सदस्य हमें समय न दे पायें। जिसका कारण उनका व्यस्ततम जीवन और जिम्मेदारियां हो सकता है। इसलिए यदि हम अपने को स्वयं के क्रियाकलापों में इतना व्यस्त रखेंगे तो उन लोगों  को भी एक खुशनुमा माहौल दे पाएंगे।

बहस से दूर रहें। क्योंकि आज की पीढ़ी बहस नहीं चाहती है जब भी लगे हमारी किसी बात से बहस बढ़ रही है तो शांत हो जाएं। क्योंकि बहस करने से हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पढ़ सकता। वैसे भी बहस से तनाव ही बढ़ता है।

नई पीढ़ी के विचार से तालमेल बनाएं

यदि आप समय के साथ होने वाले बदलावों को खुले मन से अपना लेंगे तो नई पीढ़ी के साथ तालमेल बनाकर ख़ुशी को निरंतर महसूस कर पाएंगे और आपको उम्र का एहसास भी नहीं होगा।

नियमित मैडिटेशन अवश्य करें जिससे शरीर में नई ऊर्जा का विकास हो।

महत्वपूर्ण है कि वृद्धावस्था आपके जीवन का बेहद खुशहाल समय हो सकता है, ताकि हम अपने जीवन में इस पुरस्कृत समय का आनंद लेने के लिए स्वस्थ आदतों और अच्छे दोस्तों के साथ इसकी तैयारी करें।

वृद्धावस्था के बारे में हमारा दृष्टिकोण वृद्धावस्था में हम जो अनुभव करेंगे, उसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उम्र बढ़ने के बारे में नकारात्मक धारणा न रखें। उम्र बढ़ने के बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण रखने पर आप एक सफल रोल मॉडल बनेंगे। जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे कई चुनौतियाँ आ सकती हैं, लेकिन वृद्धावस्था हमारे जीवन में सबसे अधिक खुशी और खुशी का समय हो सकती है।

बड़े बुजर्ग घर मै आशीर्वाद की तरह होते है और उनको खुश रखना आसान होता है। उसके लिए आपको कुछ बाते ध्यान में रखनी है। उनके साथ समय व्यतीत करें जब आप बाहर से या अपने ऑफिस से आते है तो कम से कम 10–15 मिनट उनके साथ बात करे ।

जब भी बाहर जाएं उनसे पूछे कि उनको कुछ मांगना तो नहीं है। इससे उनको लगता है कि मेरे बच्चे उनकी केयर करते हैं।

बच्चो के लिए नियम बनाए की अपने दादा दादी या नाना ननी के साथ आधा घंटा रोज खेलना है यह उनको बहुत खुशी देता है। जैसे मैंने अपने घर में किया है, मेरे बच्चे अपने दादाजी के साथ रोज खेलते है चाहे वह ताश खेले या शतरंज या वह उनसे हिंदी पढ़े।

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घर मै आयोजित किसी भी कार्यक्रम की रूपरेखा में  उनको शामिल करे। उनको बहुत अच्छा लगता है। हमेशा सकारात्मक रहे उनकी किसी भी बात का बुरा ना माने।

मानव जीवन भर तो धन संचयन और देखभाल में लगा रहत है लेकिन जब वृद्ध अवस्था आती है तो एक सवाल मन में जरुर कौंधता है कि इसे खुशहाल कैसे बना सकते है। मेरा मानना है कि धन से द्रव्य तो खरीदे जा सकते है खुशियां नहीं। उसके लिए तो सुकून चाहिएं। एक बुजुर्ग व्यक्ति अपने परिवार की खुशी में ही सुख तलाशता है, अपने बेटे बहू की मुस्कान में ही अपनी हंसी तलाशता है, ऐसे में बहुत ज़रूरी होता है कि माँ-बाप अपने बच्चो को काबिल बनाए। उन्हें उनकी जिम्मेदारी का एहसास करवाए। आधुनिक युग में बहुत सी संतान तो ऎसी ही जों बुढ़ापे में अपने माँ-बाप का साथ नहीं देती और अपने बीवी बच्चों के साथ अलग रहती है, क्यूंकि उनका स्टैंडर्ड कहीं ना कहीं मेल नहीं खाता है, तो आज के दौर में मां बाप को समय के साथ ढ़लना होंगा। धर्म शास्त्रों की बातें किताबी ज्ञान बन कर रह गई है, आप को भी थोड़ा प्रैक्टिकल होना पड़ेगा। आप एक बात से अच्छी तरह से वाकिफ हो कि असली सुख परिवार जनो की खुशी में ही समाहित है और एक बुजुर्ग इंसान तो हर वक़्त अपनी संतान की खुशी की ही कामना करता है। एक अच्छी परवरिश जीवन पर्यन्त संतान को आपसे दूर नहीं ले जाती बल्कि सम्मान कि भावना जागृत करती है। जरूरी है कि माँ-बाप अपनी संतान को समय समय पर धार्मिक तीर्थ स्थानों का भ्रमण करवाए। उन्हें भारतीय संस्कृति और अखंडता से रूबरू करवाए। जब तब आपके प्रति आपकी संतानों में प्रेम और सम्मान नहीं जगेंगा आप वास्तविक सुख से वंचित रहेंगे।

इसके अतिरिक्त अपको जीवन पर्यन्त खाली नहीं बैठना है कि मेरा रिटायरमेंट हों गया है अब तो सिर्फ आराम करेंगे। एक बात हमेशा याद रखे कि यदि जीवन में कोई मकसद नहीं होगा तो जीवन नीरस लगने लगेगा। तो कोई भी व्यापार व्यवसाय जरूर करते रहे इससे आपका शरीर में दुरुस्त रहेगा आपमें चैतन्यता होंगी और आपको बोरियत कभी भी नहीं होंगी। बुढ़ापे का मतलब कदापि नहीं है कि खटिया में लेट कर राम नाम का जाप करते रहे, बल्कि इस वक़्त आप अपने अनुभवो से अपने परिवार जनों के काफी काम आ सकते है उन्हें पथ प्रदर्शित कर सकते है। कभी भी खुद को खाली मत रहने दे, अन्यथा जीवन के असली स्वाद को खो बैठेंगे, जब तक जिए तब तक एक विचार मन में बना रहे कि मुझे कैसे ना कैसे अपने परिवार के काम आना है ऐसा करने से आपकी आत्मा को कोई मलाल नहीं रह जाएगा। और मृत्यु उपरांत जो इससे तृप्ति का अनुभव करोगे। 

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