विचार करने की कला

Share

विचार वही व्यक्ति गहनता से करता है जो अंतरात्मा की आवाज सुन लेता है। विचार करने की कला हर व्यक्ति के पास नहीं होती। विचार ही हृदय का दर्पण होते हैं। विचारों से ही व्यक्ति के मन की पावनता परिलक्षित होती है तथा उसके हृदय की मलिनता भी सामने आ जाती है।

प्रीति चौधरी “मनोरमा”
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
 

       अंतरात्मा की आवाज के विषय में बात करने से पहले “अंतरात्मा” शब्द को जान लेना अत्यंत आवश्यक है। अंतरात्मा देह का विषय न होकर आत्मा का विषय है… अनुभूति का विषय है… जब हम अंतरात्मा की बात करते हैं तो एक अमूर्त भाव की बात करते हैं, जिसमें दूसरे के दुख को भली-भाँति अनुभूत किया जा सकता है। आत्मा से आत्मा का संबंध हमेशा पावन और आध्यात्मिक होता है, जैसे उपासक का अपने ईष्ट से… बच्चे का माँ से। कभी-कभी मीलों दूर रहकर भी माँ अनायास ही तड़प उठती है, उसे बच्चे के दुख दर्द का एहसास दूर रहकर भी हो जाता है।

  यह अनुभूति अंतरात्मा से ही होती है। जब कोई व्यक्ति पाप करता है तब भी एक बार अवश्य ही उसकी अंतरात्मा उसे झकझोरती होगी, किंतु यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह उस समय उस आवाज को सुन पा रहा है अथवा नहीं। जब हम दूसरे के प्रति अत्यधिक पूर्वाग्रह रखते हैं अथवा किसी के प्रति हमारे मन में बदले की भावना अत्यधिक बलवती होती है तो हम अक्सर अंतरात्मा की आवाज को या तो सुन ही नहीं पाते हैं या फिर उसे सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। अंतरात्मा की आवाज को सुनना अत्यंत आवश्यक है। अंतरात्मा की आवाज को सुनने के लिए व्यक्ति का सभी पूर्वाग्रहों से परे होना जरूरी होता है। यदि तनिक भी बैर या द्वेष का भाव हमारे हृदय में है, तो हमारी अंतरात्मा सुषुप्त अवस्था में चली जाती है। ऐसे में हृदय में मात्र लोभ, क्रोध, मोह और ईर्ष्या का ही बोलबाला होता है।

Read Also:  जिम्मेदारियाँ निभाने के बाद आई जिंदगी को जीने की बारी

  प्रत्येक व्यक्ति  को कोई न कोई दैवीय शक्ति निर्देशित करती है। यह शक्तियाँ भी दो प्रकार की होती हैं। एक उसे नकारात्मक दिशा में ले जाती है तो एक सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है। हिटलर के विषय में भी एक कहानी प्रचलित है कि जब वह एक साधारण  सैनिक था तब वह एक बार अपनी छावनी में सो रहा था। सोते हुए उसे उसकी अंतरात्मा ने निर्देशित किया कि दुश्मन के द्वारा उनकी छावनी पर हमला होने वाला है और वह तुरंत उठ गया। उसने इस विषय में छावनी के अन्य सदस्यों को जगा कर बताया किंतु सब ने मात्र सपना समझकर उसे पुनः सो जाने के लिए कहा। किंतु हिटलर ने कहा कि नहीं यह हमला अभी आधे घंटे के अंदर होने वाला है और हमें उस हमले से बचने के लिए इस छावनी को तुरंत छोड़ देना चाहिए। किसी ने भी उसकी बात नहीं सुनी और उसे मूर्ख की संज्ञा भी दी गई, किंतु हिटलर ने बिना समय गवाए छावनी को छोड़ दिया और वह उस स्थान से बहुत दूर निकल आया। अगले दिन उसने वापस जाकर देखा तो वहाँ छावनी का नामोनिशान नहीं था। वहाँ बमबारी की गई थी और वह पूरी छावनी शत्रु के द्वारा उड़ा दी गई। इस प्रकार हिटलर के प्राण बच गए और उसने दुनिया में अपनी निडरता का परचम लहराया।

  अब यदि हम निर्भया केस पर दृष्टिपात करें तो उसके मुख्य आरोपी राम सिंह ने जेल में ही फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। यह कदम भी अंतरात्मा के दुत्कारने से क्षुब्ध होकर उठाया गया। पाप का बोझ जब आत्मा पर इतना अधिक बढ़ गया कि देह उसे उठाने में असमर्थ होने लगी, तो व्यक्ति को अपराध बोध हुआ और अंतरात्मा के द्वारा धिक्कारने से व्यथित होकर उस व्यक्ति ने अपना जीवन ही खत्म कर दिया।

Read Also:  प्रतिदान (लोक कथा)

  अंतरात्मा की आवाज को कभी भी अनसुना नहीं करना चाहिए। यदि समय रहते अंतरात्मा की आवाज सुनी जाती तो शायद निर्भया के साथ यह त्रासदी नहीं होती। कृत्य करते समय भी अवश्य ही अंतरात्मा ने इस जघन्य अपराध को करने से मना किया होगा किंतु अपनी तृष्णा के चलते वह आवाज सुनी ही नहीं गई।

  ऐसा नहीं है कि आधुनिक युग में अंतरात्मा चुप हो चुकी है या बोलती नहीं है, अंतरात्मा तो आज भी आवाज देती है बशर्ते कि हम उसे सुनें। हम भौतिकवादिता के कोलाहल में उस अंतरात्मा की पावन आवाज को सुनना ही नहीं चाहते हैं।

एक मशहूर पेंट का विज्ञापन मुझे बहुत अच्छा लगता है, उसमें घर के भीतर के मनोरम दृश्य दिखाते हुए कोई एक पंक्ति कही जाती है कि “हर घर कुछ कहता है।”

  यह सच है कि यदि आपके पास एक संवेदनशील मन होगा तो घर जो कहता है उसे आप सुन सकेंगे। इसी तरह किसी का मन भी कुछ कहता है… आँखें भी कुछ कहतीं हैं और आत्मा भी आवाज देती है किंतु हम व्यस्तता भरी जिंदगी में उस आत्मा की आवाज को अनसुना कर देते हैं।

  कभी किसी चाय की दुकान पर चाय पीते समय, बर्तन साफ करते हुए उस अबोध बालक को देखिए …. उसकी आँखों की पीड़ा को पढ़िए… उसकी अंतरात्मा की आवाज को पढ़ने की कोशिश कीजिए… वह कितना विवश है… पढ़ नहीं सकता…. अपने सपने सपने पूरे नहीं कर सकता.. हर समय मात्र उसे काम करना है.. अपने परिवार का खर्च वहन करने के लिए बर्तन साफ करने हैं… बचपन की शैतानियाँ, जिम्मेदारियों के बोझ तले दबकर रह गई हैं। यदि हम उस बालक की स्थिति देखकर अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनें तो अवश्य ही हम उसकी मदद करने के लिए तत्पर हो जाएँगे, किंतु अक्सर ऐसा नहीं होता। हम यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि सारा जहाँ ही दुखी है… किस-किस के दुखड़े मिटायेंगे…. ऐसे अनेकों बच्चे भारत में बाल श्रम कर रहे हैं… किस-किस को निजात दिलाएँगे।

Read Also:  ‘सीखना’ क्यों सीखना जरूरी है?

  मैंने भी एक बार अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी। जब मैं गाड़ी में अपने पतिदेव के साथ कहीं जा रही थी, तो गाड़ी रेड सिग्नल होने पर थोड़ी देर के लिए सड़क पर रुकी। तभी मैंने देखा कि गाड़ी के शीशे के पास खड़े एक छोटे से बालक ने पैन खरीदने का अनुग्रह किया। मेरे पति ने यह कहकर मना कर दिया कि हम यह पेन यूज नहीं करते। मैंने उनसे आँखों ही आँखों में पेन खरीदने की विनती की। वह पेन खरीदने के लिए मान गए किंतु इन्होंने कहा “कौन लिखेगा” मैंने कहा “कोई न कोई तो होगा, जो इन पेन की कीमत समझेगा। कोई नहीं मिला तो मैं स्वयं लिख लूँगी। आप ले लीजिए।”

  उन्होंने वह पूरे पैकेट खरीद लिए और पैसे उस बच्चे को दे दिए। इसके बाद जो उस बच्चे के चेहरे पर मधुर मुस्कान दौड़ी उसे देख कर मुझे बहुत आत्मसंतुष्टि का अनुभव हुआ।

  अगले दिन मैंने वही पैन अपने विद्यालय के बच्चों को वितरित कर दिए। वे बच्चे जो पेंसिल मुश्किल से खरीद पाते थे उनके लिए यह पैन बहुत ही अच्छे और अनमोल थे। सभी बालकों के चेहरे पर हर्ष और उल्लास देखकर मुझे खुशी हुई… साथ ही साथ इस बात की भी संतुष्टि हुई कि मैंने अपनी आत्मा की आवाज को अनसुना नहीं किया। आत्मा की आवाज क्षणिक होती है यदि त्वरित निर्णय नहीं लिया तो यह मौन हो जाती है।

अंत में बस यही कहूँगी:

कब तक जिस्म पर अटके रहेंगे हम।

कभी तो रूह से रूह की कोई बात हो।।

कब तक दूसरे की पीड़ा को मज़ाक समझेंगे हम

कभी तो दूसरों के दुख में आँखों से बरसात हो।

****

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top

Discover more from

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading