आज दोपहर को जैसे ही छुट्टी की घंटी बजी, बच्चे प्रेयर स्थल में पंक्तिबद्ध खड़े हुए। एक-एक करके सभी शिक्षक भी उपस्थित हुए। फिर हेड मास्टर रघुवीर ठाकुर जी बोले- “बच्चों! कल कौन-सी तारीख है; और कौन सा राष्ट्रीय पर्व है जी?”

व्याख्याता (अंग्रेजी)
घोटिया-बालोद (छत्तीसगढ़)
“कल 15 तारीख है; यानी 15 अगस्त। कल हमारा राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस है सर जी।” बच्चे बोले।
“…तो कल सुबह सबको सात बजे स्कूल आना है। लेट-लतीफी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। सवा सात को ध्वजारोहण होगा। साढ़े सात को प्रभात फेरी निकलेगी। सुन रहे हो ना…?”
“जी सर जी!” बच्चे अपने हेडमास्टर की बातें बड़े ध्यान से सुन रहे थे।
“और तुम सब को यूनिफॉर्म में आना है। बिल्कुल साफ-सुथरा गणवेश होना चाहिए अपने ये व्हाइट् शर्ट और खाकी पेंट। व्हाइट् शूज़ एंड शॉक्स। और हाँ, जिनके पास एक ही स्कूल यूनिफॉर्म हैं, वे अभी घर जाकर तुरंत साफ कर लेंगे। एक और बात का भी ध्यान रखना कि जिन्हें भाषण, गीत, कविता प्रस्तुत करना है, वे अच्छी तरह तैयारी करके आएँगे। चलिए…, लाइन से निकलिए अब। कल का टाइम याद है ना?”
“जी सर जी!” बच्चे अपना-अपना बस्ता उठाकर स्कूल से कतारबद्ध निकलने लगे।
घर पहुँचते ही रोशन अपनी स्कूल ड्रेस निकालने लगा। एक ही पुरानी स्कूलड्रेस थी। रंग भी उड़ गया था। कहीं-कहीं फट भी गये थे। फिर वह अपने मोजे-जूते को ढूँढने लगा। उसके शर्ट-पेंट गंदे तो थे ही; मोजे-जूते का भी हाल-बेहाल था। उसे बहुत दुख हुआ। फिर उन सबको लेकर साफ करने के लिए वह तालाब जाना चाहा। साबुन ढूँढने लगा। साबुन भी नहीं मिला; और भला मिलेगा कहाँ से। साबुन तो घर में था ही नहीं। उसे हेड मास्टर की हिदायत याद आने लगी। लगने लगा कि अगर वह गंदे कपड़े पहन कर जाएगा तो दोस्त उसका मजाक उड़ाएँगे। स्कूल नहीं जाएगा तो दूसरे दिन शिक्षकों से झिड़की सुनने को मिलेगी। फिर सोचने लगने लगा कि बरसात का भी मौसम है। साफ करूँगा, तो सूख भी नहीं पाएँगे। रोशन अपने मटमैले हो चुके स्कूलड्रेस व मोजे-जूते को पकड़ कर बैठ गया।
पंद्रह-बीस मिनट बाद रोशन की दादी आयी। बोली- “बेटा, तू तालाब जाने वाला था क्या अपने स्कूल ड्रेस को धोने के लिए? ला, मैं धोकर ले आती हूँ। मैं दुकान से साबुन लेकर आ रही हूँ ना।” दादी की बात सुनकर रोशन चहक उठा। अपने पूरे कपड़े व मोजे-जूते दादी को दे दिया। साबुन व कपड़े लेकर दादी कहने लगी- “रोशन, तू चिंता मत कर बेटा; मैं हूँ ना तेरी दादी। कल तू स्कूल जाएगा ही। अमीना-हामिद का प्यार उमड़ पड़ा। दादी के तालाब जाने के बाद रोशन अपनी पंद्रह अगस्त वाली तैयारी में जुट गया। उसे अपने मन से कोई एक गीत या कविता प्रस्तुत करने के लिए शिक्षक यदु जी ने कहा था।
शाम को रोशन के माँ और बाबू जी खेत से घर आये। रोशन की तैयारी देख कर खुश हो गये। अपनी माँ को देख रोशन कहने लगा- “माँ, जल्दी खाना बनाओ। बहुत जोर से भूख लगी है। दोपहर को ही मैं घर आ गया हूँ। आज जल्दी छुट्टी हो गई ना।”
“क्यों जल्दी छुट्टी हुई आज? पाँचवी कक्षा बस की जल्दी छुट्टी हुई क्या आज?” रोशन के बाबूजी बीच में ही पूछ बैठे।
“वाह…! बाबूजी कल पंद्रह अगस्त है ना। स्कूल ड्रेस वगैरह साफ करने और गीत, कविता, भाषण की तैयारी करने की छुट्टी मिली है।” रोशन बोला।
“अरे हाँ….! रोशन बेटा तुम्हारे लिए नई स्कूल ड्रेस नहीं खरीद पाये अभी तक। अब क्या करें बेटा! कुछ काम-वाम चल नहीं रहा है। पैसा-कौड़ी की बहुत किल्लत हो रही है।” कहते हुए बाबू जी स्टूल पर बैठ गये।
“तेरी शर्ट-पैंट साफ है न बेटा? पुरानी हो गयी है रे। कहीं-कहीं पर फट भी गयी है। साफ-वाफ है कि नहीं?” माँ ने कहा।
असगनी की ओर इशारा करते हुए रोशन बोला- “दादी ने साफ किया है ना।”

“नहीं धोना था; कैसे सुखेंगे सुबह तक।” गीले कपड़े को छू-छू कर माँ देखने लगी। तभी उसने अचानक देखा कि शर्ट जहाँ पर पहले से फटी थी, वहाँ और ज्यादा फट गयी थी। फिर वह तुरंत सुई-धागे लेकर सीने बैठ गयी। रात दस बजे तक कपड़े नहीं सूखे। लगातार टिपिर-टिपिर पानी भी गिर रहा था। फिर ऐसे में ड्रेस का सूखना मुश्किल ही नहीं; वरन् असंभव लगने लगा। सबको चिंता होने लगी। तभी दादी ने सलाह दिया कि हल्की-सी आग जलाकर उसकी धीमी आँच से सुखाने से कपड़े जरूर सूख जाएँगे। बात सबको सही लगी। कपड़े के गर्म होते ही पानी भाप बनकर उड़ने लगा। सूखने सा लग ही रहा था कि अचानक जलती आग ने शर्ट के नीचले हिस्से को पकड़ ली। आनन-फानन में आग बुझायी गयी। दुर्बल को दो आषाढ़ हुआ। अब क्या किया जाय। शर्ट से मैच करता हुआ कपड़ा भी नहीं था, जिसे उस शर्ट के साथ जोड़ दिया जाय। धागे भी खतम। गरीबी में आटा गीला। सबको बड़ा दुख हुआ। जैसे-तैसे रात गुजरी।
फिर सुबह फटी शर्ट को ही पहन कर रोशन का स्कूल जाना तय हुआ। उसने अपने मटमैले जूते को चाक स्टीक रगड़-रगड़ कर सफेद कर लिया था। रोशन का स्कूल जाने का जुनून देख कर घरवाले बहुत खुश थे। पढ़ाई-लिखाई में सामान्य अपने बेटे रोशन पर घरवालों को बड़ा गर्व था।
रोशन समय पर स्कूल पहुँच गया। कार्यक्रम में भाग लिया। बच्चा तो बच्चा ही होता है। घर की पिछली रात की कुछ बातें उसे रह-रह कर याद आ रही थीं, और कुछ बातें बहुत चुभ भी रही थीं। पर उसने किसी के सामने कुछ नहीं बोला। फिर गीत-कविता प्रस्तुति कार्यक्रम शुरू हुआ। रोशन की बारी आई। कक्षा शिक्षक ने उसे बहुत सी बातें बताई थी; और उसने अपने से भी तैयारी की थी। मंच पर गया। माइक्रोफोन पर बोलना शुरू किया- “परम आदरणीय मुख्य अतिथि महोदय, विशेष अतिथि महोदय, शिक्षकगण, गाँव से आये गणमान्य नागरिक व मेरे सहपाठी भाइयों एवं बहनों! आज मैं स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में एक छोटी-सी कविता प्रस्तुत करना चाहता हूँ। कृपया, गलती पर ध्यान न देवें। जैसे ही रोशन ने पूरे जोश के साथ अपना दायाँ हाथ उठाया, पेंट के नीचे दबी फटी शर्ट निकल गयी। पहले तो सबकी नजर फटी शर्ट पर पड़ी, पर किसी ने भी ध्यान देना उचित नहीं समझा। करतल ध्वनि से सभी रोशन का हौसला बढ़ा रहे थे। रोशन पूरी जोश-खरोश के साथ लहराते हुए तिरंगे को देखते हुए कविता सुना रहा था:
“सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी।
बूढ़े भारत में भी आयी फिर से नयी जवानी थी।
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी।
दूर फिरंगी को करने की, सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी….।
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