याददाश्त को ठीक बनाए रखने के लिए अनिवार्य है मानसिक सक्रियता

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कुछ लोग, विशेष रूप से बढ़ती उम्र में कहते हैं कि उनकी याददाश्त बड़ी ख़राब है और वे जल्दी ही चीज़ों को भूल जाते हैं। जहाँ तक भूलने की बात है भूलना एक स्वाभाविक क्रिया है। यदि हम हर चीज़ को याद रखने की कोशिश करेंगे, तो हमारा दिमाग़ परेशान हो जाएगा। अतः कुछ चीज़ें भूल जाने में ही हमारी भलाई है। लेकिन इतना भी नहीं कि हम सामान्य बातें भी भूल जाएँ। हमें चाहिए कि हम केवल ज़रूरी चीज़ों को ही याद रखें। लेकिन हमारी याददाश्त सामान्य बनी रहे इस बात का भी हमें अवश्य ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए कुछ बातों को जानना और उनका ध्यान रखना हमारे हित में होगा।

सीताराम गुप्ता
पीतमपुरा, दिल्ली 

जहाँ तक याददाश्त के अच्छे या बुरे होने का प्रश्न है, वास्तव में याददाश्त अच्छी या बुरी नहीं होती। हाँ कई बार कुछ बीमारियों के कारण याददाश्त कमज़ोर हो जाती है अथवा पूरी तरह से चली भी जाती है। यदि हम इस विषय में प्रारंभ से ही सचेत रहें, तो याददाश्त संबंधी समस्याएँ उत्पन्न ही न हों। अन्य बातों की तरह हमारी याददाश्त भी हमारी सोच द्वारा प्रभावित होती है। यदि हम सोचते हैं कि हमारी याददाश्त कमज़ोर है, तो हमारी याददाश्त ठीक होते हुए भी वह एक दिन अवश्य ही कमज़ोर हो जाती है। इसके विपरीत यदि हम सोचते हैं और अपने मन को विश्वास दिला देते हैं, कि हमारी याददाश्त अच्छी है, तो वह निश्चित रूप से अच्छी ही रहती है। वैसे तो मनुष्य के दिमाग़ की क्षमता अपरिमित अथवा बहुत अधिक होती है। ज़रूरत है तो केवल उसका सही इस्तेमाल करने की।

हमारी याददाश्त में हमारे मस्तिष्क की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है, क्योंकि यदि उसका इस्तेमाल ही नहीं किया जाएगा तो उसमें ज़ंग लगने जैसी स्थिति हो जाएगी। सामान्यतः हम अपने मस्तिष्क की क्षमता का बहुत कम इस्तेमाल करते हैं। प्रायः हम अपने मस्तिष्क की आठ-दस प्रतिशत क्षमता का ही उपयोग करते हैं। हम अपने मस्तिष्क की क्षमता का जितना ज़्यादा इस्तेमाल करेंगे, वह उतनी ही बढ़ती चली जाएगी। याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए अपने मस्तिष्क की क्षमता का अधिकाधिक इस्तेमाल कीजिए। कुछ न कुछ ऐसा करते रहिए जिसमें सोचना पड़े। सोचने के लिए दिमाग़ लगाना पड़ता है, अतः इससे दिमाग़ सक्रिय रहता है और हमारी याददाश्त का स्तर अच्छा बना रहता है।

एक बार मैं अपने एक मामाजी से मिलने गया, तो देखा कि वे आठवीं कक्षा की गणित की एक पुस्तक के सवाल हल करने में जुटे हुए थे। उस समय लगभग अस्सी वर्ष की उम्र में भी वे शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह से स्वस्थ थे। मानसिक रूप से चुस्त-दुरुस्त बने रहने के लिए दिमाग़ी कसरत करते रहना बहुत लाभदायक रहता है। वर्ग-पहेली भरने अथवा गणित के सवाल निकालने से व्यक्ति दिमाग़ी तौर पर अधिक सक्रिय रहता है और दिमाग़ी तौर पर अधिक सक्रिय रहने वाले व्यक्ति की याददाश्त हमेशा अच्छी बनी रहती है। इसके लिए ज़रूरी है कि हम हिसाब लगाने के लिए कैल्कुलेटर आदि का कम से कम प्रयोग करें। जब हम गुणा-भाग करने अथवा हिसाब लगाने के लिए पहाड़ों की सहायता लेते हैं, तो इससे हमारे मस्तिष्क की सक्रियता बढ़ जाती है। इससे हमारी याददाश्त अच्छी बनी रहती है।

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वस्तुतः जो व्यक्ति मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ होता है, वह शारीरिक रूप से भी पूरी तरह स्वस्थ होता ही है। मानसिक रूप से स्वस्थ होने का अर्थ ही है, कि हम अपने मन की सकारात्मक वृत्ति द्वारा अपने मस्तिष्क का पूर्ण रूप से अधिकाधिक इस्तेमाल कर रहे हैं। समस्याएँ भी हमारी याददाश्त को अच्छा बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं, इसलिए समस्याओं से न तो घबराएँ और न ही उनकी उपेक्षा करें। जब भी कोई समस्या उत्पन्न हो उस पर विचार करें और उसका सही व सकारात्मक समाधान खोजने का प्रयास करें। समस्या का भी समाधान हो जाएगा और याददाश्त भी अच्छी बनी रहेगी।

याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में सोना भी ज़रूरी है। वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है, कि कम सोने से हमारे ब्रेन के एक हिस्से में ब्रेन सेल्स या न्यूरॉन्स की संख्या कम हो जाती है, जिससे याददाश्त कमज़ोर पड़ जाती है। जो लोग पर्याप्त मात्रा में नींद नहीं लेते, वे प्रायः याददाश्त की कमी की शिकायत करते पाए जाते हैं। भरपूर नींद लीजिए और अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ याददाश्त भी अच्छी बनाए रखिए। रात में भरपूर नींद लेने के साथ-साथ दिन में ली गई एक झपकी भी मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है। याद रखिए उचित अथवा पर्याप्त मात्रा में नींद लेना लाभदायक होता है, लेकिन साथ ही बहुत अधिक मात्रा में सोना भी याददाश्त के लिए हानिकारक होता है।

हास्य का भी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने से गहरा संबंध है। हँसने के दौरान हमारे प्रसुप्त ब्रेन सेल्स या न्यूरॉन्स सक्रिय हो जाते हैं और हमारी याददाश्त को तेज़ करने में सहायता करते हैं। हँसने के दौरान हम ध्यान अथवा एकाग्रता की स्थिति में आ जाते हैं। हँसने से स्वाभाविक रूप से हमें ध्यान के लाभ मिल जाते हैं। ध्यान अथवा एकाग्रता की स्थिति भी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने में सहायक होती है, अतः अपनी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त बना रखने के लिए जब भी मौक़ा मिले ख़ूब हँसें-हँसाएँ। हँसी हमें बहुत से रोगों से मुक्त रखने में सहायक होती है अतः एक रोगमुक्त अथवा स्वस्थ व्यक्ति की याददाश्त भी अच्छी होगी इसमें संदेह नहीं।

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नई वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि बचपन में सीखी गई कई भाषाएँ वृद्धावस्था में व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती हैं, क्योंकि एक से अधिक भाषाएँ बोलने वाले व्यक्ति का दिमाग़ केवल एक भाषा जानने वाले व्यक्ति की तुलना में वृद्धावस्था में भी अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय रहता है। अधिक भाषाओं की जानकारी व्यक्ति के दिमाग़ के अंदर ऐसे लिंक्स तैयार कर देती हैं, जिनसे व्यक्ति की मानसिक सक्रियता बनी रहती है। यदि आप बचपन में अधिक भाषाएँ नहीं सीख पाए हैं, तो कोई बात नहीं, आज ही किसी नई भाषा को सीखना प्रारंभ कर दीजिए।

गायन-वादन, नृत्य, अभिनय व अन्य कलाओं जैसे मूर्तिकला व शिल्प आदि के द्वारा भी हमारी एकाग्रता का विकास होता है, अतः तनाव दूर करने तथा अपनी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने के लिए इन कलाओं का सहारा लिया जा सकता है। इसके लिए बड़ा चित्रकार या कलाकार होने की भी ज़रूरत नहीं। मनमाफिक रंगों द्वारा आड़ी तिरछी रेखाएँ खींचकर अथवा गीली मिट्टी से विभिन्न आकृतियाँ बनाकर हम आसानी से अपनी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त बनाए रख सकते हैं। जब बच्चे ऐसा कोई कार्य कर रहे हों तो उनके साथ स्वयं भी कार्य करने लग जाएँ।

कलाभ्यास ही नहीं अन्य कलाकारों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों का अवलोकन भी हमारे मनोभावों को परिवर्तित कर उपचार करने में सहायक होता है। जो कलाकृतियाँ अथवा पेंटिंग्स हमें अच्छी लगती हैं, उन्हें देखने से सुकून मिलता है तथा हमारी एकाग्रता का विकास होता है। इससे जो ध्यान परिवर्तन होता है वह हमारी शारीरिक पीड़ा को कम कर देता है तथा खिन्न मानसिकता को प्रसन्नता में बदल देता है। हम अपने घरों की दीवारों को जिन पेंटिंग्स से सजाते हैं, उनका भी हमारे मनोभावों और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है अतः उनका चयन बड़ी समझदारी से करना चाहिए।

याददाश्त अच्छी बनी रहे इसके लिए कुछ नया याद करते रहें, कुछ नया सीखते रहें। कुछ अच्छी कविताएँ अथवा शेरो-शायरी याद करें। कुछ अच्छी चीज़ों अथवा साहित्यिक रचनाओं का संग्रह करें। कुछ न कुछ नया सीखते रहने के प्रयास से व्यक्ति की रचनात्मकता के स्तर में वृद्धि होती है, जिससे व्यक्ति जल्दी बूढ़ा नहीं होता और याददाश्त भी चुस्त-दुरुस्त बनी रहती है। अपनी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने के लिये न केवल ख़ुद सीखते रहें, अपितु दूसरों को सिखाने में भी कुछ न कुछ समय लगाएँ। जब हम कुछ नया सीखने का प्रयास करते हैं अथवा दूसरों को कुछ सिखाते हैं तो इस क्रम में हमें अपनी पुरानी जानकारी अथवा पहले सीखी हुई चीज़ों की भी ज़रूरत पड़ती है। इसके लिए बार-बार मस्तिष्क पर ज़ोर डालना पड़ता है जो अच्छी याददाश्त बनाए रखने में सहायक होता है।

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बुढ़ापे को दूर रखकर याददाश्त को भी अच्छा रखना है तो अकेलेपन से बचें। अकेलेपन से बचने के लिए सामाजिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लें। हर उम्र के व्यक्तियों से, विशेष रूप से बच्चों से संवाद स्थापित करने का प्रयास करें। रिटायरमेंट के बाद या वृद्धावस्था में अत्यंत सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिए, इससे पूर्ण रूप से स्वस्थ रह सकेंगे। वैसे सक्रिय जीवन से रिटायरमेंट न लेने वाला कभी रिटायर या वृद्ध नहीं होता ओर न ही याददाश्त संबंधी समस्याओं का शिकार ही होता है। सक्रियता से न केवल हमारी याददाश्त अच्छी बनी रहती है, अपितु वृद्धावस्था में छोटी-मोटी शारीरिक व्याधियों से भी मुक्ति मिल जाती है, क्योंकि इससे हमारा पूरा ध्यान किसी न किसी कार्य पर केंद्रित रहता है।

हमारी सोच और दृष्टिकोण के साथ-साथ हमारा खान-पान भी हमारी याददाश्त को कम प्रभावित नहीं करता। कम मात्रा में चाय-कॉफी का सेवन भी हमारी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने में सहायक होता है। अगर शरीर में पॉलीफिनॉल्स की पर्याप्त मात्रा हो तो इससे याददाश्त की कमी का ख़तरा कम हो जाता है। ताज़ा अनुसंधानों से ये बात स्पष्ट होती है कि चाय, कॉफी आदि पेय पदार्थ शरीर में पॉलीफिनॉल्स के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। इस प्रकार चाय और कॉफी हमारी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने में भी सहायक होती है। ताज़ा फल अथवा फलों के रस का सेवन करना भी लाभदायक होता है, क्योंकि इनमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स हमारी कोशिकाओं को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं।

बातचीत करना भी हमारी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने में सहायक होता है। बातचीत करते समय दूसरों की बातों को ध्यान से सुनना पड़ता है। दूसरों की बातें सुनने, समझने और फिर उत्तर देने के क्रम में दिमाग़ की अच्छा ख़ासा कसरत हो जाती है, जो हमारी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने में सहायक होती है। इस प्रकार से कॉफी टॉक हमारी दिमाग़ी सेहत के लिए काफी लाभदायक होती है।

कॉफी टॉक ही नहीं, जो लोग दूसरों की समस्याओं को ध्यान से सुनकर वास्तव में उनका समाधान निकालने में रुचि लेते हैं, उनकी याददाश्त भी अपेक्षाकृत अच्छी बनी रहती है।

संक्षेप में कह सकते हैं कि लोगों के साथ मेल-जोल, जीवन के प्रति लगाव व जीवन के हर क्षेत्र में सक्रियता द्वारा हम न केवल अपनी याददाश्त को अच्छी बनाए रख सकते हैं, अपितु अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ भी बने रह सकते हैं।

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