नई दिल्ली रेलवे स्टेशन हादसा में मरने वाले और घायल लोगों के विभिन्न आंकड़े बताया जा रहा है। लोग दुख प्रकट कर रहे हैं। रेलवे प्रशासन और सरकार को कोस रहे हैं। महाकुंभ पर भी कुछ लोग भड़ास निकाल रहे हैं। लेकिन ऐसे हादसे कोई बड़ा या इंपोर्टेंट खबर नहीं है, ऐसे हादसे पहले भी होते रहे हैं और शायद आगे भी होंगे। अभी छह महीने भी नहीं बीते हैं जब मुंबई में लगभग मिलते-जुलते कारणों से ऐसे ही भगदड़ मचा था। हाल में हुए रेल एक्सीडेंट पर मैं बात नहीं करूंगी। दरअसल हम लोग तत्कालिक राहत यानि क्विक रिलीफ़ चाहते हैं। सरकार हो या जनता कभी बेसिक चीजों में नहीं जाते, हमे लिपा पोती ही अच्छा लगता है, फिर जब कोई हादसा होगा तब देखा जाएगा, कुछ दिन के बाद सब ठीक हो जाएगा। कुछ उदाहरण देख लीजिए:
1. मुझे नहीं पता सीट से कितने अधिक लोगों को वेटिंग टिकट दिया जाता है। काउंटर टिकट लेकर आप वेटिंग में भी यात्रा कर सकते है, ऑनलाइन है तो कैन्सल हो जाता है। जनरल टिकट और सीट का रेशयों भी नहीं पता। पर हमारे देश के लोगों को अपने सिस्टम पर इतना भरोसा होता है की बहुत से लोग काउंटर टिकट या जेनरल टिकट लेकर ट्रेन में इस भरोसे चढ़ जाते हैं कि आगे चल कर कुछ ले दे कर टीटी से टिकट का इंतजाम हो ही जाएगा। फिर तत्काल टिकट भी तो होता है। बहुत से लोग तो टिकट के ली जहमत भी नहीं उठाते अगर भीड़ ज्यादा हो तो। ऐसे में न तो रेलवे को पता होता है कि कितने लोग यात्रा करेंगे न ही यात्री को पता होता है कि सीट के बावजूद वह आराम से यात्रा कर पाएगा।
2. भीड़ वाले मार्गों पर या किसी विशेष समय में सरकार विशेष रेलगाड़ी चलाती है। लेकिन रेलवे ट्रैक तो उतना ही रहता है। अभी कुम्भ के लिए सैकड़ों विशेष ट्रेन चलाई गई है। ये ट्रेन चली तो है उसी रेलवे ट्रैक पर। इसलिए इस दौरान अधिकांश ट्रेन लेट चल रही हैं। कुम्भ स्पेशल ट्रेनों की भी यही हाल है। बात केवल कुम्भ की ही नहीं है। होली, दिवाली, छठ इत्यादि पर जो स्पेशल ट्रेन चलती है, उसका भी यही हाल रहता है। अगर कुहरे का समय हो तो सोने पर सुहागा हो जाता है। ट्रेन 24 घंटे भी लेट हो सकती है। दिवाली पर हुई मुंबई भगदड़ में ऐसा ही हुआ था। आंकड़े बताते हैं कि ट्रेनों की संख्या जितनी तेजी से बढ़ रही है, उनकी रफ्तार उतनी कम हो रही है।
3. ट्रेक की कमी के कारण कभी-कभी ट्रेन के आने का प्लेटफॉर्म भी बदल दिया जाता है। अगर कोई बड़ी दुर्घटना नहीं भी हो पर इससे अफरा-तफरी जरूर हो जाता है प्लेटफॉर्म पर।
4. लालू प्रसाद जब रेलवे मंत्री थे तो देश विदेश में उनका नाम इसलिए गया था कि उन्होने बिना किराया बढ़ाए रेलवे को मुनाफा में ला दिया था। उनके बाद ममता बैनर्जी और राम विलास पासवान जब बने तो उन पर भी ये प्रेसर रहा। वर्तमान में कुछ टेक्नोलोजी में सुधार आदि जरूर हुए हैं पर नए रेलवे ट्रैक बनाने का काम लगभग नगण्य है।

5. अभी हाल में ही घोषणा की गई है कि टीटी अब ट्रेन के अंदर भी टिकट दे सकता है। यह पहले से ही आ रही व्यवस्था को लीगल करने से ज्यादा कुछ नहीं है।
तो क्या है समाधान? ट्रेन और रेलवे ट्रैक दोनों को बढ़ाना, वेटिंग लिस्ट और जेनरल टिकट की संख्या पर नियंत्रण रखना, टाइम पर ट्रेन चलाना तो बेसिक जरूरत है। साथ ही हर ट्रेन में एक सिटिंग कम्पार्टमेंट होना चाहिए जिसमें कुछ विशेष जरूरतमन्द लोगों को ही पर्याप्त कारण होने पर टिकट दिया जाय जैसे, बीमारी, मृत्यु, इंटरव्यू इत्यादि के लिए। लोगों को एसी मिले न मिले पर कम से कम सांस तो मिले, एक साफ टॉइलेट तो मिले और ये तो पता हो जहां जा रहे हैं वहाँ पहुँच ही जाएंगे। साथ ही प्लेटफॉर्म पर भी नजर रखना होगा ताकि समय रहते बचाव किया जा सके।
लेकिन ये छोटे-छोटे काम नहीं किए जाएंगे क्योंकि इससे मीडिया और जनता का अटेन्शन नहीं मिलेगा। हाँ मुआवजा जरूर घोषित कर सकते हैं। ये केवल रेलवे ही नहीं बल्कि हर विभाग के लिए सही है। बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर जरूरी नहीं है, बल्कि लोगों के कानों को अच्छे लगने वाले उपाय जरूरी हैं, गरीब रथ, दुरान्तो, बंदे भारत, महाराजा ट्रेन, स्पेशल ट्रेन,…… बायोडिग्रेबल टॉइलेट…. एंटी कोलिजन डिवाइस…..पेसेंजर इंश्योरेंश….. जेनेरल डिब्बे यानि आम जनता के डिब्बे…… सुनने में कितना अच्छा लगता है न!