भैया रिटायर क्या हुए…(व्यंग्य)

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भैया कुछ दिन पहले ही रिटायर हुए हैं और वज़ह-बेवज़ह ही बड़े स्ट्रैस्ड हैं। रिटायर्ड आदमी की जिंदगी ऐसी हो जाती है मानो आप अचानक एक सार्वजनिक संपत्ति बन गए हों, जिसे हर कोई अपने अनुभवों और ज्ञान से सजाने-संवारने का अधिकार समझता है।

डॉ.यशोधरा भटनागर
वरिष्ठ साहित्यकार एवं सेवानिवृत्त शिक्षिका
देवास, मध्यप्रदेश 

रिटायरमेंट के बाद आदमी जितना अपने भविष्य के बारे में नहीं सोचता, उससे कहीं ज़्यादा लोग उसके लिए सोचने लगते हैं। हर कोई अचानक सलाहकार बन जाता है, और ऐसी नसीहतें देने लगता है, मानो उन्होंने खुद रिटायरमेंट के सारे विशेषज्ञ पाठ्यक्रम पढ़ रखे हों।

पहली नसीहत होती है सेहत के बारे में। “अब तो सेहत का ख्याल रखना शुरू कर दो!”

गोया पहले हम रोज़ाना आलू के पराठे चबाकर और ऑफिस की कुर्सी पर दिनभर बैठे-बैठे हीलियम के गुब्बारे की तरह फूल रहे थे, और अब रिटायरमेंट के बाद अचानक ओलंपिक एथलीट बनने की तैयारी करनी हो।

और यदि किसी दिन आपने कह दिया कि “आज तो आराम करूंगा,” तो आपको ऐसे देखा जाता है जैसे आप अपनी सेहत को जानबूझकर बर्बाद कर रहे हों। सुबह-सुबह टहलने की सलाह ऐसे दी जाती है कि अगर एक दिन भी घूमने नहीं गए तो तुरंत अस्पताल का रास्ता पकड़ना पड़ेगा। अगर आपने हिम्मत कर के मॉर्निंग वॉक शुरू कर भी दी, तो पड़ोसी ऐसे ताने मारते मिलेंगे, “बड़े दिन बाद दिखे, लगता है अब रिटायरमेंट का असर दिखने लगा है!”

दूसरी सलाह होती है वित्तीय प्रबंधन को ले कर।

“अब पैसों को बहुत सोच-समझ कर खर्च करना।” अरे भाई, जिंदगीभर जो कमाया वो सोच-समझकर ही खर्च किया। अब रिटायरमेंट के बाद ऐसा क्या नया हो गया कि हमें इसका ककहरा फिर सीखना पड़ेगा। लेकिन नहीं, हर कोई यह समझाने लगता है कि किस बैंक में एफडी करवानी है, किस म्युचुअल फंड में निवेश करना है, और कहाँ-कहाँ से बचत करनी है। रिटायरमेंट के बाद आप अचानक से “फाइनेंशियल गाइडेंस” के लिए सॉफ्ट टारगेट बन जाते हो। मानो आपने अपनी पूरी जिंदगी पैसे उधार लेकर ऐशो-आराम में बर्बाद कर दी हो। और ये सलाह देने वाले अक्सर वही लोग होते हैं जिनकी खुद की आर्थिक स्थिति डांवाडोल रहती है। लेकिन फिर भी वो आपको म्युचुअल फंड और फिक्स्ड डिपॉजिट्स का एक्सपर्ट  बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते। अब  यदि आपने किसी दिन अपने शौक के लिए  कोई नई गाड़ी या गैजेट खरीद लिया तो आपको ऐसे घेरा जाएगा जैसे आपने अपनी पेंशन बर्बाद करने का कोई अपराध कर दिया हो।

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“अब इस उम्र में ये सब? बचत पर ध्यान दो!” आप सोचते हैं, “भैया कमाया ही इसीलिए था कि अब अपने ऊपर खर्च कर सकूँ!”

समय के सदुपयोग करने की सलाह तो हर कोई जेब में रखे घुमाता है जहाँ मिले हाथ में थमा दी।

“अब खाली वक्त में कोई समाजसेवा का काम पकड़ लो दादा। अभी तक सिर्फ अपने बारे में ही सोचा है अब जाति समाज की भी खबर लो।”

इस तरह की बातें सुनकर लगने लगता है कि अभी तक हम दुनिया के पहले दर्जे के खुद फरामोश थे जिसका पाप धोने का अब वक्त आ गया है। कहीं किसी एन.जी.ओ. से जुड़ने का सुझाव मिलेगा, तो कोई कहेगा कि बच्चों को पढ़ाओ। अगर आप ऐसा कुछ नहीं कर रहे, तो मानो आप अपनी जिंदगी यूँ ही बर्बाद किये दे रहे हो। और यदि गलती से जवाब में आपन यह कह दिया कि “अब मैं थोड़ा आराम करना चाहता हूँ,” तो आपको अक्षम्य अपराध करार दिए जाने की भी पूरी संभावना होती है।

चौथी नसीहत होती है परिवार के साथ वक्त बिताने की। “अब तो बच्चों के साथ कुछ वक्त बिताओ।”

यह सलाह सुनकर लगता है जैसे बच्चों हमेशा से  इंतजार कर रहे थे कि कब हम रिटायर हों और वो हमारे साथ कंचे खेलें। सच्चाई तो यह है कि बच्चे अब खुद इतने व्यस्त हैं कि उन्हें अपने कामों से फुर्सत नहीं मिलती। लेकिन रायचंदों का तो मानना है कि अब हमें उनके पीछे-पीछे घूमते रहना चाहिए, ताकि उन्हें लगे कि हम ‘फैमिली मैन’ बन गए हैं। और अगर आप कभी अकेले कुछ वक्त बिताना चाहें, तो फिर शुरू हो जाते हैं, “अरे, बच्चों के बिना अकेले मन लगेगा क्या?”

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और अंतिम नसीहत होती है अगला जीवन सुधारने की। “अब भगवान का नाम लो, भजन पूजन करो।”

अरे भाई अब दम मारने की फुर्सत मिली है इस जिंदगी में थोड़ा सुस्ता तो लें फिर सोचेंगे अगले जन्म का। और अगर कहीं आपने खुदा न खास्ता यह कहा दिया कि “मुझे तो क्रिकेट का मैच देखना पसंद है या फिल्म देखना है तब आप मोहल्ले के सबसे बड़े नास्तिक करार दे दिए जाओगे।

कुल मिलाकर, रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी में नसीहतों की बाढ़ आ जाती है। हर कोई यह मानता है कि अब आपकी जिंदगी का एकमात्र उद्देश्य उनकी सलाह मानकर उसे अमल में लाना है। चाहे आप कितना ही कहना चाहें कि “भई, अभी मैं खुद को संभाल ही रहा हूँ,” लेकिन लोगों और समाज को तो आपको संवारने का ठेका मिल ही गया है।

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