वृद्धावस्था जीवन यात्रा का नैसर्गिक व अंतिम पड़ाव होता है। मानव जीवन चक्र चार अलग-अलग अवस्थाओं से गुजरती है: बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था व वृद्धावस्था। प्रकृत्ति खुद को एक चक्रीय पद्धति से परिवर्तित करती है। यह ठीक उसी प्रकार है जैसे: मौसम का बदलना, इतिहास का दुहराना आदि। ठीक उसी तरह एक वृद्ध व्यक्ति अपने जीवन के अंतिम अवस्था में अनचाहे रूप से एक बार फिर से बालपन को जीने लग जाते हैं।

प्रभात कुमार
ग्राम: चोरौत, सीतामढ़ी, बिहार
निम्नवर्गीय व मध्यमवर्गीय परिवारों में रोजगार तलाशने के क्रम में लोग अपने वृद्ध माँ-बाप को गाँव के घरों में छोड़कर रोजगार की तलाश में शहरों की ओर निकल जाते हैं, जिसमें अधिकांश शहरों में ही रच-बस जाते हैं। उन्हें गाँव में रह रहे अपने बूढ़े माँ-बाप की जरूरतों का कोई ध्यान नहीं रहता है। वहाँ भी उनके दिमाग में यही चल रहा होता है कि जब तक माँ-बाप हैं, कम से कम गाँव का घर और खेती-बाड़ी तो सुरक्षित है। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव व नकलची बनने के बढ़ते चलन के कारण लोग बूढ़े माँ-बाप को अकेले छोड़कर उनसे अलग रहना भी आधुनिकता की निशानी समझने लगे हैं।
जीवन भर की कमाई को बच्चों की छोटी-छोटी खुशियों पर लुटाने वाले किसी भी व्यक्ति का संतान जब उनके वृद्धावस्था में उनकी खुशियों को नजरअंदाज़ कर अपने पत्नी-बच्चों के संग ऐशो-आराम की जिंदगी जीने लगता है, तब भी कोई वृद्ध व्यक्ति अपने संतानों का बुरा नहीं सोचता है। यदा-कदा छोड़कर सरेआम वह अपने संतानों के इस व्यह्वार की चर्चा तक नहीं करता है। वह अपनी छोटी-छोटी जरूरतों जैसे: नित्यक्रिया करने, ब्रश में टूथपेस्ट लगाकर लेने, अख़बार लेने, छड़ी ढूँढने, बिजली के उपकरणों का स्वीच खोलने या बंद करने, किसी को फोन लगाने या उठाने, पानी पीने, कपड़े धोने आदि के लिए बच्चों पर उनकी निर्भरता बढ़ जाती है।
कल तक जिन पोते-पोतियों को अपनी गोद में बैठाकर खिलाया होता है, जिन्हें लोरी गाकर सुलाया होता है, जिनको हँसाने के लिए अलग-अलग जानवरों व पक्षियों की भाँति-भाँति की आवाजें निकाला होता है, जिनके साथ खेलने के लिए घोड़ा-हाथी तक बना होता है, आज उन पोते-पोतियों को उसके दादा-दादी बोझ नज़र आ रहे हैं।
वृद्धजनों के अंदर किसी बात को लेकर कौतूहलता भी अधिक बढ़ जाती है। कुछ सवाल लगभग हर वृद्धों के बीच उभयनिष्ठ हैं। जैसे: कौन आया? किसने क्या बोला? किसका फोन आया था? क्या कह रहा था? कौन कहाँ गया था? किसलिए गया था? अब तक क्यों नहीं आया? इत्यादि। पर्व-त्योहारों, घर के किसी उत्सव में रीति-रिवाजों, पहनावों, खान-पान को लेकर बेहद ही सजग रहने वाले बुजुर्गों को वृद्धावस्था में घर में बिलकुल ही अनसुना किये जाने का प्रचलन बढ़ गया है। वृद्धजनों ने अपने हर जरूरी कामों को छोड़कर जिन बच्चों को अपना समय दिया, उन बच्चों को आज उनसे बात करना तो दूर उनकी बात तक सुनने का समय नहीं होता है। मोबाइल के इस अंधे दौड़ में जहाँ लोग बेमतलब की चीजों में अपने-अपने मोबाइल में व्यस्त होते हैं, वहाँ घर के बुजुर्गों को एकाकी जीवन गुजारना पड़ता है। जब वृद्धजन घर के लोगों के साथ बात करना चाहते हैं, उनके विभिन्न गतिविधियों में शामिल होना चाहते हैं, तब लोग उनकी अनदेखी करते हैं।
इन परिस्थितियों में जीने के बाद वृद्धावस्था को जी रहे व्यक्तियों के अंदर एक स्वाभाविक मानसिक बदलाव आता है। उन्हें अपना ही बनाया घर पराया लगने लगता है। वे जरूरत से ज्यादा चिड़चिड़े हो जाते हैं। कई बार उन्हें ज्यादा व अनावश्यक बोलने या बोलते रहने की, तो कई बार बिल्कुल चुप रहने की, आदत हो जाती है। अब वह अपनी जरूरतों को अपने ही बच्चों के साथ साझा करने से बचते हैं। बीमार होने की स्थिति में भी वह दवा लेने के लिए ज्यादा गंभीर नहीं होते हैं।
वर्तमान दौड़ में यह निम्नवर्गीय, मध्यमवर्गीय व उच्चवर्गीय परिवारों की आम कहानी है। 90% से भी अधिक परिवारों में बुजुर्गों की ऐसी ही हालत है और यह आँकड़ा भयावह है। उन्हें अब अपना जीवन बोझ लगने लगता है। वे बात-बात में इस बात को दर्शाने लगता है कि अब वे सभी पर बोझ है। वह ऊपर वाले से दुआ करने लगते हैं कि वह उसे जितनी जल्दी हो, उठा लें।
वृद्धावस्था सभी के जीवन में आनी है। सभी को एक-न-एक दिन जीवन के इस कटु लेकिन आवश्यक मोड़ से जरूर गुजरना है। “राम नाम सत्य है। सभी का यही गत्य है।” के मूल आशय को समझते हुए हमें न सिर्फ अपने घर के बुजुर्गों का बल्कि अपने आस-पास के किसी भी बुजुर्ग का सम्मान करने की जरूरत है।
वृद्धजन सिर्फ हमारे जन्मदाता या पालनकर्ता ही नहीं होते बल्कि वे हमारे सांस्कृतिक विरासतों के सजग वाहक के साथ-साथ हमारे धरोहर भी हैं। इसलिए वृद्धजनों की मनोदशा को समझते हुए हमें उनकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए और उनके साथ अधिक से अधिक समय व्यतीत करते हुए बात-बात पर उन्हें झिड़कने से बचना चाहिए तथा उनकी सभी तरह की जरूरत में उनका पूरा सहयोग करना चाहिए।