
वसंत और स्त्री अलग कहां हैं? दोनों एक ही तो हैं! घर में बेटी आ जाए या बहू आ जाए तो मानो वसंत ही आ जाता है। एक नई रौनक आ जाती है। समाज, परिवार, साहित्य और फिल्मों में कई अवसरों पर विभिन्न उद्गारों के माध्यम से इसे महसूस किया जा सकता है। आंगन की चिड़िया, आंगन में उसका फ़ुदकना, कोयल सी बोली, गुलाब सा खिला चेहरा, फूलों सी खुशबू, बहू के आने से घर में बहार आदि उपमाओं से जब समय-समय पर स्त्री को सम्मानित किया जाता है या उसका लाड किया जाता है तो सामने वसंत की छवि ही उपस्थित होती है।
वसंत ऋतु और स्त्री जीवन में कई समानताएं हैं।
मुसीबतों में श्रेष्ठ प्रदर्शन
स्त्रियां मुसीबतों के दौर में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करती हैं। ऐसे अनगिनत उदाहरण हमारे सामने हैं। अपने पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तमाम कठिनाइयों, अवरोधों और प्रतिकूल परिस्थितियों को झेलते हुए ना जाने कितनी महिलाएं शीर्ष पर पहुंची हैं। उन्होंने न सिर्फ खुद को संभाला, परिवार को संबल दिया और समाज का गौरव बढ़ाया बल्कि समाज के उत्थान में अपना सक्रिय योगदान भी दिया। किसी ने कहा भी है कि स्त्रियां चाय की पत्ती की मानिंद होती हैं, जो उबलने के बाद और भी ज्यादा कड़क हो जाती हैं। ऐसा ही तो है वसंत का प्रदर्शन। झुलसाती हुई गर्मी, चुभती हुई कड़ाके की सर्दी और कुदरत को लगभग अनावृत कर चुके पतझड़ के बाद जब चारों ओर सन्नाटा छाया रहता है, पेड़ पौधे घास दूब आदि मटमैले से नजर आने लगते हैं तब आती है वसंत ऋतु। ओस के कणों से धूलीपुँछी घास और उजड़ चुके पेड़ों पर नई कोपलें, हर तरफ रंग बिरंगे फूल, सन्नाटे को चीरती कोयल की कूक, चिड़ियों की चहचहाहट, सुहानी मादक हवा आदि रुकी हुई प्रकृति और मानव जीवन को फिर से पूरी तरह सक्रिय कर देते हैं।
नवसृजन की क्षमता
वसंत नवसृजन की ऋतु है। प्रकृति पूरी तरह इसके नए सृजन से दोबारा गुलजार हो जाती है। स्त्री तो स्वयं साक्षात नवसृजन की प्रतिमूर्ति है। इस सृष्टि की जननी है। यह सृष्टि स्त्री का ही तो सृजन है। स्त्री का सृजन बहुआयामी और विस्तृत होता है। यह शिशु को जन्म देने तक ही सीमित नहीं। अगर आप व्यापक दृष्टि से देखें तो पाएंगे कि स्त्री अवसर का सृजन कर सकती है, नए रिश्तो का सृजन कर सकती है, टूटे हुए या बिखरे हुए रिश्तो का पुनः सृजन कर सकती है, परिवार में सद्भावना, रिश्तो में मिठास का सृजन कर सकती है। घर की रसोई में भी वह नित नए पकवानों का सृजन करके सब को तृप्त करती है और आनंद का सृजन करती है।

विनम्रता का पाठ
वसंत ऋतु हमें इतना कुछ देती है फिर भी आपको पग पग पर उसकी विनम्रता स्पष्ट नजर आ जाएगी उसकी हवाओं में न तो ग्रीष्म जैसी उष्णता है न ही शीत ऋतु जैसी चुभन। वसंत की हवाएं विनम्र, सुहावनी और हमें प्रेम से स्पर्श करती हुई प्रतीत होती हैं। पेड़ों पर नई कोंपल हों या अपने सौंदर्य के भार से लदी फूलों से आच्छादित डालियाँ सब विनम्रता से झुके हुए प्रतीत होते हैं। चारों तरफ खिले रंग बिरंगे फूल विनम्र भाव से हमें अपनी और आकर्षित करते हैं। अपनी खुशबू, आकर्षक रंगों और औषधीय गुणों के बावजूद उनमें कहीं अहंकार या उज्जड़ता नजर नहीं आती। स्त्री ऐसी ही तो है। घर में बेटी के रूप में, छोटी या बड़ी बहन के रूप में, बहू के रूप में या पत्नी के रूप में सब को खुश करते हुए भी विनम्रता का भाव रखती है।
सुकून देने का गुण
भागदौड़ की इस दुनिया में जब इंसान बेहद दुखी और चिड़चिड़ा हो जाता है, अवसाद चिंता, उदासी और हताशा से घिर जाता है तो मनोचिकित्सक उसे सलाह देते हैं प्रकृति की शरण में जाने की। वसंत में खिले फूलों से सुसज्जित उद्यान और ठंडी हवाएं मन को बड़ा सुकून देती हैं। फूलों की खुशबू और उनकी इंद्रधनुषी रंगों की आभा मन को शांत करने वाली मानी जाती है। ठीक ऐसा ही सुकून तब मिलता है जब चिंता से ग्रस्त कोई बेटा अपनी मां की गोद में उसका आंचल ढक कर कुछ देर आराम करता है, सहधर्मिणी विनम्र भाव से अपने पति को सांत्वना देती है और संघर्ष के लिए उसके साथ खड़ी होती है, बहन अपने भाई के कंधे पर हाथ रखकर हर संभव मदद का आश्वासन देती है या घर की बहू अपना सहयोग देने के लिए आगे आती है।
सरस्वती स्वरूपा स्त्री
वसंत उत्सव मां सरस्वती की आराधना के बिना अधूरा है। मां सरस्वती पत्थर की शिला पर विराजती हैं और आवागमन के लिए हंस का प्रयोग करती हैं। श्वेत वस्त्र धारण किए मां सरस्वती विद्वता का स्रोत और सागर होने के बावजूद सादगी पसंद होती है। स्त्री जीवन उनसे बहुत प्रभावित है। एक कुशल गृहिणी विपरीत परिस्थितियों में भी घर संभालती है। हंस की तरह नीर और क्षीर का अंतर जानती है। मां के रूप में अपने शिशु को अक्षर ज्ञान और भाषा ज्ञान करवाने वाली पहली शिक्षिका भी मां ही होती है। विवेकशील गृहिणियाँ आमतौर पर सादगी पसंद ही होती हैं।
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