बस जीतने वाला ही सिकंदर नहीं होता

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हर एक जगह एक सा मंजर नहीं होता

जितेन्द्र सुकुमार साहिर
गरियाबंद,राजिम छत्तीसगढ़(अध्यक्ष-रत्नांचल जिला साहित्य परिषद) 

बाहर है जो अक्सर यहां अंदर नहीं होता

क़ातिल कई ऐसे भी होते हैं जहाँ में

 हाथों में वो जिनके कोई खंजर नहीं होता

 मज़बूत अगर होते कहीं रिश्तें दिलों के

 तो आज मकां मेरा यूँ खंडहर नहीं होता

 क़ीमत जो समझता यदि शबनम की ज़रा भी

 तो प्यासा कभी कोई समंदर नहीं होता

जो हार के भी जीते हैं,  देखे हैं सिकंदर

बस जीतने वाला ही सिकंदर नहीं होता

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