बयार (लघुकथा)

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“होटल के हाल में “हिंदी दिवस” का कार्यक्रम चल रहा था। मुख्य अतिथि बहुत प्रभावी भाषण दे रहे थे। श्रोता मंत्र मुक्त होकर उन्हें सुन रहे थे।

. (डॉ.) योगेन्द्र नाथ शुक्ल
पूर्व प्राचार्य, निर्भय सिंह पटेल शासकीय विज्ञान महाविद्यालय
सुदामा नगर, ए सेक्टर, अन्नपूर्णा मार्ग
इंदौर, मध्य प्रदेश

कार्यक्रम संपन्न हुआ और सब लंच के लिए बाहर निकलने लगे।

शहर का सबसे बढ़िया होटल था, इसलिए शानदार दावत थी। खाने के साथ-साथ कार्यक्रम की सफलता के लिए बधाइयों का आदान-प्रदान भी हो रहा था। शासन को कार्यालय की रपट कैसी भेजी जाए? इस पर भी विचार हो रहा था।

दो अधिकारी भीड़ से अलग हाथ में प्लेट पकड़े, बातें कर रहे थे। एक अधिकारी जो सूटेड बूटेड था। उसने दूसरे अधिकारी से कहा- “मुख्य अतिथि बहुत अच्छा बोलते हैं। उनका भाषण सुनकर लगा कि हम अपनी मातृभाषा पर कितना अत्याचार कर रहे हैं?”

पूरी बात सुनकर दूसरा अधिकारी बोला- “आप इस भ्रम में मत रहिएगा कि वह मातृभाषा के कट्टर समर्थक है…. आपको कभी उनके घर लेकर चलूंगा। उनके घर में अंग्रेजियत छायी मिलेगी। कुछ दिनों पूर्व उनके पिताजी बता रहे थे कि उनके पुत्र को उनके धोती-कुर्ता पहनने और हिंदी में बातें करने पर सख्त आपत्ति है।”

यह सुनकर उस अधिकारी ने आश्चर्य प्रकट किया।

“अरे…! इसमें आश्चर्य कैसा….? ‘बिहेव एकॉर्डिंग विंड’….!”

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