वृन्दावन के सुप्रसिद्ध संत प्रेमानन्द जी महाराज की यात्रा को लेकर आजकल कुछ विवाद चल रहा है। कहा जा रहा है कि महाराज जी प्रतिदिन रात को 2 बजे स्नान के लिए पैदल यमुना जी जाते हैं। इस दौरान उनके अनुयायी और भक्त बड़ी संख्या में उनके दर्शन के लिए आते हैं। इस दौरान संगीत भी बजाया जाता है और लोग रास्ते में उन्हें प्रणाम एवं उनके दर्शन करते हैं। इस यात्रा के वीडियोज़ भी वायरल होते रहते हैं। पास के ही एक सोसाइटी ‘एनआरआई ग्रीन’ के लोगों ने उनकी इस यात्रा का विरोध किया। पहले कहा गया कि महाराज जी ने इस विरोध के बाद अपनी यात्रा स्थगित कर दिया। पर फिर खबर आई कि वे अब 2 बजे के बदले सुबह 4 बजे बिना संगीत के शांति से पैदल चलते हुए स्नान के लिए यमुना जी जाते हैं। महाराज जी का यह कदम निश्चय ही सराहनीय है और उनके सम्मान एवं गरिमा के अनुरूप है।


पर इसके बाद यह खबर आई कि कुछ दुकान वालों ने ‘एनआरआई ग्रीन’ सोसाइटी के लोगों को समान बेचने से मना कर दिया। उनके कुछ अनुयायियों को सोसाइटी वालों का यह व्यवहार भी बुरा लगा।
अपने सम्मानीय लोगों और धर्म के प्रति आस्था को समझा जा सकता है। पर शायद धर्म हमें इंसान और उसकी पीड़ा को समझाने में असफल रहा है। कभी सुबह अजान के नाम पर विरोध होता है तो कभी मंदिरों में ज़ोर-ज़ोर से आरती या किसी पाठ के होने के नाम पर। फिर इस विरोध का विरोध होता है धर्म के नाम पर।
कुम्भ के टेंट सिटी में, जहां कल्पवासी रुके हुए थे, और जहां अधिकांश बड़े साधू/महात्माओं/गुरुओं/कथावाचकों के आश्रम/शिविर लगे हुए थे वहाँ रात को भी पूरे ज़ोर-शोर से लाउड स्पीकर पर भजन और मंत्रोच्चार होते रहे। इससे वहाँ रहने वाले रात को भी ठीक से सो नहीं पाते। उनके भजन, पाठ और जप में विघ्न होता था। दिल्ली जैसे जगहों पर कोई भी कभी भी किसी संकरी गली में टेंट लगा कर ‘माता की चौकी’ लगा लेता है। किसी पर्व-त्योहार, पूजा-पाठ, अनुष्ठान में मंदिरों और घरों में तेज आवाज से लाउड स्पीकर बजाना बहुत से लोग अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते हैं।
हालांकि शादी-ब्याह और क्रिकेट मैच के दौरान भी यह होता है पर जब मामला धर्म से संबन्धित हो तो हम सीधे अपनी आस्था और धर्म पर हमला ही मान लेते हैं। हमारी आस्था दूसरों के पीड़ा को देखने नहीं देती, शायद यही आस्था और धर्म की सबसे बड़ी असफलता है।