प्रदूषण में वृद्धि के लिए जिम्मेदार विभिन्न कारक 

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सरिता सुराणा, हैदराबाद
हिन्दी साहित्यकार एवं स्वतंत्र पत्रकार 

बीते कई दिनों से देश की राजधानी दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण बेहद ख़तरनाक स्तर पर पहुंच गया है। इसकी वजह से वहां के निवासियों को न केवल सांस लेने में तकलीफ़ हो रही है बल्कि आंखों में जलन और त्वचा सम्बन्धी अन्य परेशानियां भी हो रही हैं। द्वारका इलाके में हवा की गुणवत्ता का स्तर 900 के पार पहुंच गया है। ऐसे में लोग स्वच्छ हवा में सांस लेने को तरस गए हैं। दिल्ली पूर्ण रूप से गैस चैंबर में तब्दील हो चुकी है।

हमारे देश में जब भी किसी सार्वजनिक समस्या के बारे में बात होती है तो हम सब उसका पूरा दोष वहां की सरकार पर मढ़ देते हैं। प्रकृति और पर्यावरण से संबंधित कोई भी समस्या न तो एक दिन में पैदा होती है और न ही एक दिन में उसका समाधान ढूंढा जा सकता है। ये दोनों ही दीर्घकालिक समस्याएं हैं। 

जो लोग इसके लिए सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं, वे यह भूल रहे हैं कि दिल्ली में वायु प्रदूषण काफी पुराना है। इसकी गवाह मैं स्वयं हूँ। यह सन् 1998 की बात है जब मैं दो महीने के लिए दिल्ली के विश्वास नगर इलाके में रही थी। उस समय वहां पर घरों के आगे वायर फैक्ट्रियों का वेस्ट नालियों में बहता था। आसमान में हमेशा धुंध और धुंआ छाया रहता था। कभी भी सुनहरी धूप नहीं निकलती थी। शाम के समय सड़क पर सिग्नल लाइट की रोशनी एकदम धुंधली नज़र आती थी। मैदान और पार्क में पेड़ों पर मिट्टी की एक परत चढ़ी रहती थी। कुल मिलाकर वहां मेरी हालत खराब हो गई और मैं वहां से तुरंत राजस्थान वापस आ गई। मैं जब भी वहां आकाश की ओर देखती तो मेरा दम घुटता था। मुझे याद आती थी मेरी हवेली के आंगन में खिली हुई वो सुनहरी धूप और वो ताजी हवा जो यहां पर दुर्लभ थी।

क्या हैं प्रमुख कारक

वाहनों से होने वाला प्रदूषण

दिल्ली में मोटर वाहन अधिनियम, 1998 को सख्ती से लागू नहीं किया जा रहा है, जिसके कारण वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। इस पर संज्ञान लेते हुए दिल्ली हाईकोर्ट समय-समय पर दिल्ली सरकार और यातायात पुलिस से पूछताछ करता है।

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केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार दिल्ली में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहनों से होने वाला प्रदूषण है। राजधानी में होने वाले वायु प्रदूषण का कुल 37% वाहनों की वजह से ही होता है। आज़ हालत यह है कि एक-एक घर में चार-चार, पांच-पांच फोर व्हीलर हैं और टू व्हीलर की तो गिनती ही नहीं है। देखा जाए तो टू व्हीलर मध्यमवर्गीय परिवार के विद्यार्थियों और कामकाजी लोगों की जरूरत है, लेकिन लग्जरी गाड़ियां उच्च वर्ग के लोगों द्वारा सिर्फ शौक और प्रदर्शन के लिए खरीदी जाती हैं। इन पर बंदिश लगनी चाहिए।

औद्योगिक उत्पादन से प्रदूषण

औद्योगिक विकास ने मानव को उच्च जीवन स्तर प्रदान करने के साथ ही सामाजिक व आर्थिक विकास को भी गति प्रदान की है। परन्तु इससे पर्यावरण की समस्या भी उत्पन्न हुई है। औद्योगिक विकास हेतु प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण पर्यावरण प्रदूषण होना अपरिहार्य है। विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप पर्यावरण में सर्वथा विषैले तत्व समावेशित हो जाते हैं, जो उसके भौतिक एवं रासायनिक संघटकों को परिवर्तित कर देते हैं। कल-कारखानों द्वारा छोड़े गए ठोस अपशिष्ट पदार्थ, प्रदूषित जल, विषैली गैसें, धूल, धुंआ और राख आदि जल और वायु प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं।

मोबाइल टावरों से निकलने वाले विकिरण

आजकल गांवों से लेकर महानगरों तक मोबाइल कल्चर पूरे उफान पर है। जहां देखो, जिसे देखो, सबके हाथ में एक अदद मोबाइल तो मिल ही जाएगा। फिर चाहे वह साधारण फोन हो या स्मार्टफोन। और फोन को चलाने के लिए इंटरनेट की आवश्यकता हम सबको होती है। इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियां अपनी सेवाओं के विस्तार हेतु अलग-अलग स्थानों पर मोबाइल टावरों को स्थापित करती हैं। इनमें से आधे से ज्यादा उनके लिए तय मानकों का पालन नहीं करते हैं। इसीलिए इनसे निकलने वाले खतरनाक विकिरण लोगों में स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करते हैं। मोबाइल टावरों में लगे बड़े-बड़े जेनरेटरों से निकलने वाला धुंआ वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है, जिस ओर लोग सामान्यतः ध्यान नहीं देते हैं। 

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एसी से फैलने वाला प्रदूषण

एसी में कूलिंग एजेंट के रूप में सीएफसीएस और एचसीएफसीएस गैसों का इस्तेमाल किया जाता है। जो धीरे-धीरे वातावरण में लीक होकर ओजोन मंडल में पहुंच कर ओजोन परत को क्षति पहुंचाती है। जिससे कि वो सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को सोखने में नाकाम हो जाती है और उनका प्रभाव हमारी त्वचा के साथ-साथ सम्पूर्ण स्वास्थ्य पर पड़ता है। एसी से रिलीज होने वाली गर्मी से बाहर के वातावरण में बदलाव आता है, इससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है, जो जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है। 

आज़ हम अपनी सुविधा के लिए हर जगह एसी की मांग करते हैं। बच्चा पैदा होता है एसी हॉस्पिटल में, घर पर रूम में एसी, स्कूल में क्लासरूम एसी, स्कूल की बस एसी और फिर वह जहां-जहां जाता है, वहां-वहां उसके माता-पिता को एसी चाहिए। मतलब सामान्य तापमान और प्राकृतिक वातावरण के साथ उसका कोई तालमेल नहीं। बड़ों की बात की जाए तो छोटे से छोटे बॉस के ऑफिस में एसी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पूरे कैम्पस एसी, बैंकों से लेकर शॉपिंग माल में एसी, कार में एसी और अब तो लोग सामान्य दूकानों में भी एसी लगा रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हम अपने क्षणिक सुख के लिए समग्र वातावरण में होने वाले प्रदूषण के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचते हैं। हम सोचते हैं कि हम तो यहां आराम से ठंडी हवा में सांस ले रहे हैं, बाहर गर्मी है तो हम क्या करें? 

एसी को चलाने के लिए भी भारी बिजली की आवश्यकता होती है और बिजली के अत्यधिक उत्पादन से भी वातावरण प्रदूषित  होता है।

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पराली का धुंआ

खेतों में जलाई जाने वाली पराली का धुंआ भी इन सबके साथ मिलकर प्रदूषण को बढ़ाता है। जब एक साथ बहुत से खेतों में पराली जलाई जाती है तो उससे उठने वाला धुंआ चारों ओर फैल जाता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ़ होने लगती है। 

भवन निर्माण कार्य

महानगरों में बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में काफी समय लगता है। निर्माण कार्य के दौरान मिट्टी, चूना और सीमेंट के बारीक कण उड़कर हवा में मिल जाते हैं, जिससे हवा में भारीपन आ जाता है और हमें सांस लेने में तकलीफ़ होने लगती है। जब पुरानी इमारतों को तोड़ा जाता है तो उनसे उठने वाला मिट्टी का गुब्बार भी वायु प्रदूषण का एक कारण है।

जनसंख्या का घनत्व

जैसा कि हम सब जानते हैं कि महानगरों में छोटे शहरों की अपेक्षा जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। इससे वहां पर वातावरण जल्दी प्रदूषित होता है। कारण साफ है कि यदि कम क्षेत्रफल में ज्यादा लोग रहेंगे तो उनकी श्वास से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस भी ज्यादा उत्सर्जित होगी। उसकी तुलना में ऑक्सीजन की मात्रा कम होगी। इससे हमें सांस लेने में तकलीफ़ होगी।

इन सब तथ्यों पर गौर करें तो हम पाएंगे कि हर तरह के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हम सब हैं। सिर्फ सरकार को दोषी ठहराना उचित नहीं है। अगर हम इस गम्भीर समस्या से छुटकारा पाना चाहते हैं तो हमें स्वयं भी इन कारणों पर गौर करना होगा और हर वो प्रयास करना होगा, जिससे हम इस समस्या का समाधान कर सकें और अपनी आने वाली पीढ़ी को साफ-स्वच्छ वातावरण दे सकें। उन्हें मास्क के साथ न जीना पड़े, इसके लिए आज़ से और अभी से प्राकृतिक वातावरण में जीना सीख लें।

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