पॉपकॉर्न माइंड: एक नई महामारी

Share

क्यों है चर्चा में पॉपकॉर्न माइंड?

मानसिक स्वस्थ्य के क्षेत्र में आजकल एक शब्द चर्चा में है ‘पॉपकॉर्न ब्रेन’ या ‘पॉपकॉर्न माइंड’। दुनिया भर में पॉपकॉर्न ब्रेन के मरीजों की संख्या इतनी तेजी से बढ़ती जा रही है कि कई स्टडी में इसे ‘महामारी’ की संज्ञा दी जाने लगी है। वर्तमान ‘ग्लोबल विलेज’ के युग में सूचनाएँ तो बहुत उपलब्ध है लेकिन इन सूचनाओं के उपयोग और विश्लेषण की क्षमता सूचनाओं के भरमार के कारण कम होने लगी है। 2019 में ‘नेचर कम्युनिकेशन (Nature Communications) में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ था। इसका निष्कर्ष था कि व्यक्ति का समूहिक ध्यान कम होने लगा है और यह सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग का नतीजा हो सकता है। बाद में अन्य अनेक अध्ययन हुए जिन्होने  इस बात की पुष्टि की। 

क्या है यह बीमारी?

यह एक सिंड्रोम है। इसमें दिमाग एक जगह केन्द्रित नहीं रह पाता है बल्कि कुछ नया ढूँढने के लिए एक जगह से दूसरी जगह भागता है। किसी एक चीज पर टिकता नहीं है। परिणामतः किसी जरूरी चीज पर भी केन्द्रित नहीं रह पाता और धीरे-धीरे व्यक्ति अपने दैनिक कार्यों को भी ठीक से नहीं कर पाता है। पॉपकॉर्न की तरह दिमाग सेकेंड भर के लिए भी शांत नहीं रहता है और उछलता रहता है एक जगह से दूसरी जगह, इसीलिए इस बीमारी को यह नाम दिया गया है।  

इस बीमारी के लक्षण क्या है?

अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, अवसाद, बेचैनी, किसी काम में मन नहीं लगना आदि इसके लक्षण होते हैं। बार-बार टीवी का चेनल बदलना, मोबाइल स्क्रीन को लगातार स्क्रॉल करना, किताबों के पन्ने को लगातार पलटना आदि इसके आरंभिक लक्षण हैं। मूड स्विंग भी इसका लक्षण हो सकता है, कभी अचानक बहुत खुश हो जाना कभी अचानक बहुत दुखी हो जाना।

Read Also:  भोजन और भजन की ये 5 सावधानियाँ रखेंगी आपको सेहतमंद

कितना खतरनाक है यह बीमारी?

पॉपकॉर्न सिंड्रोम की वजह से दिमाग संतुष्ट नहीं हो पता है। वह दुखी और बेचैन सा अनुभव करता है। धैर्य, सोचने-विचारने, विश्लेषण करने और याद रखने की क्षमता कम हो जाती है। इससे पारिवारिक, सामाजिक और पेशागत व्यवहार में भी असर पड़ने लगता है।

इस बीमारी का एक अत्यंत खतरनाक पक्ष यह है कि मरीज को यह पता ही नहीं चलता कि वह बीमार हो रहा है या उसे कोई लत लग चुकी है। उसका मस्तिष्क उसे यह एहसास दिलाता है कि उसके पास बहुत से unmanageable काम हैं जैसे मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीन पर पॉपअप होने वाले प्रत्येक नोटिफ़िकेशन को, प्रत्येक पिंग को देखना। व्यक्ति यह भूल जाता है कि अगर वह ‘यह काम’ नहीं करे तो इसका क्या नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा? वह इसे काम समझ कर करने लगता है। कई बात वह सोशल मीडिया या किसी अन्य माध्यम से मिली सूचना का विश्लेषण करने से पहले उसे जल्दी से जल्दी फॉरवर्ड करना भी अपना कर्तव्य समझने लगता है, बिना यह जाने की यह सूचना सत्य है भी या नहीं। इसे मेडिकल भाषा में ‘माइंड गेम’ कहते हैं। माइंड यह गेम व्यक्ति के साथ खेलता है, जिसका पता व्यक्ति को उस समय चल ही नहीं पाता है।   

कैसे बचे इस बीमारी से?

डॉक्टर इस बीमारी से बचाने के लिए यह सलाह देते हैं:

1. दिमाग को किसी अन्य रचनात्मक गतिविधियों में लगाएँ। कोई शौक विकसित करें और उसमे कुछ समय नियमित रूप से लगाएँ। बागवानी, बच्चों को पढ़ाना, गीत सुनना या गुनगुनाना, कोई चित्र बनाना इत्यादि ऐसी गतिविधियां हो सकती हैं।

Read Also:  बरसात में सेहतमंद रहने के लिए जरूरी है ये सावधानियाँ

2. अखबार और किताब पढ़ने की आदत डालें;

3. सैर और व्यायाम नियमित रूप से कीजिए;

4. लोगों से मिलिए-जुलिए;

5. मेडिटेशन कीजिए;

6. स्क्रीन टाइम (जो समय मोबाइल, टीवी या कंप्यूटर के स्क्रीन पर बिताते हैं) कम कीजिए। निरुद्देश्य रूप से मोबाइल स्क्रीन को स्क्रॉल करने से बचिए। जिस तरह का प्रोग्राम या वीडियो आपको देखना पसंद है, उसके लिए एक समय निश्चित कर लीजिए। कम से कम सप्ताह में एक दिन मोबाइल से दूर रहिए (डिजिटल डिटोक्स);

7. अगर कुछ उपयोगी देख रहे हैं तो यूट्यूब देखिए। जहां नजर की जरूरत नहीं है वहाँ पॉडकास्ट या वीडियो लगा कर छोड़ दीजिए और केवल सुनिए। ब्लू ट्रुथ का भी बहुत अधिक उपयोग कानों और दिमाग के लिए सही नहीं है।

दिमाग शरीर का मालिक होता है। जब दिमाग ही बीमार हो तो शरीर स्वस्थ्य कैसे रहेगा? निरुदेश्य चीजों के लिए अपना स्वास्थ्य और सामाजिक-पारिवारिक संबंध खराब करना है या थोड़ी सी सावधानी रख कर स्वस्थ्य काया रखना है, यह विकल्प हमारे पास ही है।

****

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Discover more from

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading