दिल तो बच्चा है जी (व्यंग्य)

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दिलीप कुमार

नजर बचाकर निकलना ही चाहता था कि बड़े मियां आकर सामने खड़े हो गये। मैंने झुककर अदब से सलाम किया तो तुनकते हुए बोले “ये सलाम ही करते रहोगे कभी हाय-हैलो भी कर लिया करो मियां।” मुझे हैरानी तो हुई मगर अचानक मुंह से निकल पड़ा “जब से होश संभाला है तब से सलाम ही कर रहा हूँ आपको और इस उम्र में…” बड़े मियां इतराते हुए बोले “उम्र को छोड़ो, दिल तो बच्चा है जी।”

मैं उनको अचरज से नयन भर देखा पाता तब तक उन्होंने कहा- “अमां वो लघुकथा वाली तुम्हारी भाभी हैं ना उन पर एक कविता लिख दो, यानी ग़ज़लनुमा उनके हुस्न की तारीफ करते हुए। उनका जन्मदिन आ रहा है ना” ये कहते हुए उन्होंने मोबाइल निकाल लिया और एक ख़्वातीन की फ़ोटो दिखाते हुए बोले “यही हैं वो चश्मे बद्दूर, नजर नवाज नजारों की हूर, ना जाने क्यों है मगरूर, मगर मान जाएगी ज़रूर”

मैंने उनसे अर्ज़ किया। “भाभी नहीं ये तो खाला लगती हैं भरपूर विग भी नकली लगती है, कैसी है ये हूर दांत आगे के आप की मानिंद टूटे हैं, कब्र में पैर इनके भी लटके हैं, मेरे हुजूर।”

बड़े मियां झल्लाये “अबे तू अहमक है बात इतनी मेरी समझ ले ना आंटी होगी तेरी, मेरी तो ओल्ड वाइन है ये हसीना इश्क़ वर्चुअल था अब तक, रियल होने वाला है। तुझे क्यों जलन होती है ए नामाकूल, तू है बड़ा कमीना।”

बड़े मियां की बात सुनकर मैं अंगारों पर लोट पड़ा। “पेंशन धुवाँ, जीपीएफ़ कितनों का काफूर कर चुकी ये ओल्ड वाइन बहुत बूढ़ी हड्डियों में नासूर कर चुकी ज़रा तो लिहाज करो, अपने पोते-पोतियों का ए मियां ना जाने कितने घर उजाड़ने में है ये मशूहर हो चुकी।”

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बड़े मियां को ये सलाह खासी नागवार गुजरी शायद वैसे भी बचपन की जिद और बुढ़ापे का इश्क़ कहाँ किसी की सुनता है। वो किचकिचा कर मेरी तरफ दौड़े, मुझे लगा कि वो शायद मुझ पर हमला करें, मैंने भागकर खुद को किसी तरह बचाया। मुझे पकड़ कर ठोंक ना पाने का मलाल या मेरी सलाहियत उनकी खफगी का सबब बनी शायद, मुझे उन पर तरस आ गया, वो लगातार हांफे और खांसे जा रहे थे, मैंने खुद को उनके हुजूर में पेश कर दिया और धीरे से अपनी मनोव्यथा कही। “दीगराँ नसीहत, खुदा मियां फजीहत।”                       

मैंने उन्हें चन्द लाइन लिख कर दी, जिसका मजमून यूँ था,

“मन लगे आपका राम में, तन में ना कोई रोग-व्याधि हो। जीवन सुखद हो, अनुकरणीय आपकी अदबी उपाधि हो,”

बड़े मियां झल्ला पड़े ,”बेड़ा गर्क हो तेरा, इसीलिये लघुकथा की तमाम तितलियों ने तुम्हें ब्लॉक कर रखा है” और फिर इतराते हुए बोले “और हर दिन हमें कोई ना कोई ऐड करती रहती हैं। अबे मरदूद और ये मोबाईल वाली ख़्वातीन तेरी खाला या आंटी नहीं हैं उन्हें अदब से भाभी या दीदी भी पुकार सकते हो।”

मैने हैरानी से उनसे पूछा “मगर बड़े मियां तितलियां तो फेसबुक पर साहित्य की हर विधा में हैं, फिर आप एक ही तक महदूद क्यों हैं।”

उन्होंने फिर मुझे फटकारा “अबे नामाकूल, ये नये लिटरेचर का नया फैशनेबल ट्रेंड है, खुदा लघुकथा को लम्बी उम्र दे, ये बड़ी उम्र और बच्चा दिल वालों की अंतिम पनाहगाह है। या खुदा “मुझको भी बोहनी के आसार नजर आते हैं। मैं ही इक गुल बाकी सब इसे खार नजर आते हैं”।।      

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ये कहते हुए उन्होंने मोबाईल की बलैयां ले ली और उस ख़्वातीन की तस्वीर फिर निहारने लगे। बड़े मियां रोजगार से रिटायर, सीजनल वीर रस के कवि और छुटभैया शायर थे। दो बीवियों और सात बच्चों के बावजूद उनकी बड़ी मासूम सी हसरत थी कि उन्हें भी इश्क़ हो और अदब वाली खातून से हो, गोया उनकी बीवियां और बच्चे मंगल ग्रह से टपके हों और बगैर प्यार, इश्क़ और मोहब्बत के नमूदार हुए हों। मैंने उनसे पुराने सम्बन्धों का लिहाज करते हुए कहा- खते मजमून क्या होगा, कहीं लेने के देने ना पड़ जाएं, वैसा क्या कुछ मुमकिन होगा।”

वो बड़ी सहिष्णुता से बोले- तू तो देश विरोधी बातें करता है, देश आजाद है जो लिखना है लिख, कुछ लोग कहते हैं कि जब देशद्रोह का नारा लगाने से ही कोई देशद्रोही नहीं हो जाता उसे बाकयदा देश द्रोह करना पड़ेगा सबूत के साथ वैसे ही इश्क़ का पैगाम किसी भी जुबान में देने से कोई मजनू नहीं बन जायेगा उसे दर दर पिटना पड़ेगा बहुत नोट उड़ाने पड़ेंगे तब कहीं जाकर साबित होगा। सियासत और इश्क़ में वस्ल कभी नामुमकिन नहीं होती, कल तक एक दूसरे की खूंखार दुश्मन रहीं सियासी तंजीमें आज गलबहियां डाले घूम रही हैं। देश को, संविधान को संघ से जीवन भर खतरा बताने वाले अमरसिंह ने अपनी सारी पुश्तैनी जमीन संघ को दे दी। वही सियासी खूबी इस लेडी की भी है, ये हर उस शख्स की दोस्त है जो इसे कुछ दे सके। इसकी किसी से दुश्मनी नहीं है इसे चाहे जो कुछ भी कहे बस इसकी दोस्ती की एक ही शर्त है कि पॉकेट में नोट हो। फिर मेरे पास मेरी पेंशन तो है ना इसलिये लिख दे उस ओल्ड वाइन के नाम मेरा पैगाम।”

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मेरे मुंह से बेसाख्ता निकला, “जिधर देखो उधर इश्क़ के बीमार बैठे हैं, हजारों मर गए इसमें, सैकड़ों तैयार बैठे हैं।”

बड़े मियां ये सुनकर बाग बाग हो गए, वो इतराते हुए चल दिये, मैंने उनसे कहा “कहाँ चले, अपना तर्जुमा तो ले जाएं,” वो पुलकते हुए बोले “गार्नियर लाने, कल उनका बर्थडे है ना, वही मोबाईल वाली का” और चले गए।

मैं उनको जाते हुए देखता रहा, नेपथ्य में कहीं कोई गाना बज रहा था…. दिल तो बच्चा है जी…।

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