जीवन एक उत्सव है जिसे हमें हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए। चाहे वह उम्र का कोई सा भी पड़ाव हो किंतु जीने का उत्साह और उमंग कम नहीं होनी चाहिए। वृद्ध मन में तो तरुणाई का मौसम हमें जवान रखना होगा क्योंकि मन के हारने से ही हार होती है। कहा भी गया है:

जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश
“मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत।”
बुजुर्ग व्यक्तियों का उपहास उड़ाने वाली पीढ़ी अक्सर मुझे मूर्ख नजर आती है, क्योंकि एक दिन उन्हें भी इस अवस्था में पहुँचना है। बुजुर्गों को देखकर गौरवान्वित अनुभूत करना चाहिए क्योंकि इनके पास अनुभव का खजाना है, इनके पास तजुर्बे की पूँजी है, इनके पास ज्ञान की दौलत है, जो किसी किताब में नहीं, किसी ग्रंथ में नहीं है। किसी भी गूगल पर इनकी विद्वता और बुद्धिमानी का विकल्प सर्च नहीं किया जा सकता। बुजुर्गों की सोहबत में बैठकर बालक हमेशा अच्छे संस्कार सीखते हैं। जश्न-ए-जिंदगी को मनाने के लिए व्यक्ति का जड़ों से जुड़ा होना आवश्यक है। यदि जड़े नेह-प्रेम से वृक्ष को संचित नहीं करेंगी, तो न तो जीवन एवं परिवार रूपी वृक्ष की जड़ें भूमि में स्थिर रह पायेंगी और न ही मन के सभी अंगों तक पोषण पहुँच पाएगा।
किसी ने बिल्कुल ठीक कहा है कि “जिंदगी जिंदादिली से जीने का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जीते हैं?” अर्थात हमें जितना भी जीवन मिला है, हमें उसे हंसी-खुशी व्यतीत करना चाहिए। हर समय रोते रहने.. शिकायतें करते रहने से.. विषाद की रेखाएँ हमारे चेहरे पर स्पष्ट रूप से झलकने लगती हैं। संघर्ष तो सभी के जीवन में है संघर्ष से कभी मत घबराओ। यदि हम अपने मुख-मंडल पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट सजा लें, तो हमारे जीवन में चार चाँद लग जायें।
आइए अपने जीवन को हँस कर, मुस्कुरा कर बिताते हैं। यह जिंदगी बार-बार नहीं मिलती। हर व्यक्ति के पास दुख है …दर्द है.. पीर है ..जरूरत है तो उस दुख-दर्द के सागर को मुस्कुराहट रूपी नौका से पार करने की। ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसने अपने जीवन में कोई कष्ट नहीं झेला हो। जिसके जीवन में कोई अभाव नहीं हो। जिसे अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं हो। किंतु महान व्यक्ति वही है जो उन अभावों को भी अपने आगे बढ़ने का जरिया बना ले… काँटों में भी अपनी पहचान बना ले …तथा जिंदगी के तूफानों में भी कोई सफीना ढूँढ ले… यह दर्द तो हमारे जीवित होने का साक्ष्य होते हैं। जीवन की प्रत्येक चुनौती को हँसकर स्वीकार करना, हमें आना चाहिए। फिर यह जीवन एक वरदान सिद्ध हो जाएगा, और हम इसे एक वनवास की तरह न जी कर, एक उत्सव की मानिंद मनाना शुरू कर देंगे।
जीवन में यदि संघर्ष नहीं होगा तो जीवन मृत प्राय प्रतीत होगा अतः संघर्ष से घबराएँ नहीं, अपितु चुनौतियों और संघर्ष को सहज स्वीकार करें। संघर्ष के बिना जीवन का आनंद ही नहीं है। यदि किसी तालाब का जल शांत है तो वह मलिन हो जाता है। नदी का जल तब तक ही निर्मल रहता है जब तक वह गतिशील है।
अंत में चंद पंक्तियाँ सुषुप्त मनोबल को जाग्रत करने के लिए प्रस्तुत करती हूँ:
करो सदा संघर्ष तुम, यह जीवन आधार।
जो करता संघर्ष है, उसका बेड़ा पार।।
कुंदन बन जाता मनुज, पाकर दुख की आँच।
श्रम की भट्टी से बने, हीरा मानो काँच।।
यत्न करे जब आदमी, खुलता सुख का द्वार।
जो करता संघर्ष है, उसका बेड़ा पार।।
अंतर में धीरज धरो, होगी पूनम रात।
आखिर ऊषा रश्मियाँ, देंगी सुखद प्रभात।।
नव वसंत की आस में, सह लो पतझर मार।
जो करता संघर्ष है, उसका बेड़ा पार।।
कर्म करो तुम सर्वथा, छोड़ो फल की चाह।
गीता का यह सार ही, सरल बनाता राह।।
जीवन ईश्वर ने दिया,करो व्यक्त आभार।
जो करता संघर्ष है, उसका बेड़ा पार।।
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