चतुर चोर (लोक कथा)

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श्रीचंद कामत, दिल्ली

किसी गाँव मे एक बहुत ही चतुर चोर रहता था। लोगों का कहना था कि वह आदमी की आंखों का काजल तक उड़ा सकता था। उसे अपने इस चोरी की कला पर गर्व भी था। एक दिन उस चोर ने सोचा कि जबतक वह राजधानी में नहीं जाएगा और अपना करतब नहीं दिखाएगा, तब तक चोरों के बीच उसकी धाक नहीं जमेगी। यह सोचकर वह राजधानी की ओर रवाना हुआ और वहाँ पहुँच कर उसने यह देखने के लिए नगर का चक्कर लगाया कि वह कहाँ क्या कर सकता हैं।

काफी जद्दोजहद के बाद उसने तय कि कि राजा के महल से अपना काम शुरू करेगा। राजा ने रात दिन महल की रखवाली के लिए बहुत से सिपाही तैनात कर रखे थे। सुरक्षा इतनी दुरुस्त थी कि परिन्दा भी महल में पर नहीं मार सकता था। महल में एक बहुत बड़ी घड़ी लगी थी, जो दिन रात का समय बताया करती थी।

चोर ने लोहे की कुछ कीलें इकठटी कीं और जब रात को घड़ी मे बारह बजे तो घंटे की हर आवाज के साथ वह महल की दीवार में एक-एक कील ठोकता गया। इस तरह बिना शोर किए उसने दीवार में बारह कीलें लगा दिया, फिर उन्हें पकड़ पकड़कर वह ऊपर चढ़ गया और महल में दाखिल हो गया। इसके बाद वह खजाने में गया और वहां से बहुत से हीरे चुरा लाया।

अगले दिन जब चोरी का पता लगा तो मंत्रियों ने राजा को इसकी खबर दी। राजा बड़ा हैरान और नाराज हुआ। उसने मंत्रियों को आज्ञा दी कि शहर की सड़कों  पर गश्त करने के लिए सिपाहियों की संख्या दूनी कर दी जाए और अगर रात के समय किसी को भी घूमते हुए पाया जाए तो उसे चोर समझकर गिरफ्तार कर लिया जाए। राजा ने यह भी ऐलान कर रखा था कि जो असली चोर को पकड़ लेगा उसे राजा की ओर से ईनाम दिया जाएगा।

जिस समय दरबार में यह ऐलान हो रहा था, एक नागरिक के भेष में चोर वहाँ मौजूद था। उसे सारी योजना की एक-एक बात का पता चल गया। उसे फौरन यह भी मालूम हो गया कि कौन से छब्बीस सिपाही शहर में गश्त के लिए चुने गए हैं। वह चोर साधु का भेष धारण कर उन छब्बीसों सिपाहियों की बीवियों से जाकर मिला। उनमें से हरेक इस बात के लिए उत्सुक थी कि उसकी पति ही चोर को पकड़े ओर राजा से इनाम ले।

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एक एक करके चोर उन सबके पास गया और उनके हाथ देखकर बताया कि वह रात उसके लिए बड़ी  शुभ है। उसने कहा पति की पोशाक में चोर तुम्हारे घर आयेगा; लेकिन, देखो, चोर को अपने घर के अंदर मत आने देना। घर के सारे दरवाजे बंद कर लेना और भले ही वह पति की आवाज में बोलता सुनाई दे, उसके ऊपर जलता कोयला फेंकना। इसका नतीजा यह होगा कि चोर पकड़ में आ जाएगा।

सारी स्त्रियाँ रात को चोर के आगमन के लिए तैयार हो गईं। अपने पतियों को उन्होंने इसकी जानकारी नहीं दी। इस बीच पति अपनी गश्त पर चले गये और सवेरे चार बजे तक पहरा देते रहे। हालांकि अभी अंधेरा था, लेकिन उन्हें उस समय तक इधर-उधर कोई भी दिखाई नहीं दिया तो उन्होंने सोचा कि उस रात को चोर नहीं आएगा, यह सोचकर उन्होंने अपने घर चले जाने का फैसला किया। ज्योंही वे घर पहुंचे, स्त्रियों को संदेह हुआ और उन्होंने चोर की बताई योजना पर कार्रवाई शुरू कर दी।

परिणाम यह हुआ कि सिपाही जल गए और बड़ी मुश्किल से अपनी स्त्रियों को विश्वास दिला पाएँ कि वे ही उनके असली पति हैं और उनके लिए दरवाजा खोल दिया जाए। सारे पतियों के जल जाने के कारण उन्हें अस्पताल ले जाया गया। दूसरे दिन राजा दरबार में आया तो उसे सारा हाल सुनाया गया। सुनकर राजा बहुत चिंतित हुआ और उसने कोतवाल को आदेश दिया कि वह स्वयं जाकर चोर पकड़े।

उस रात कोतवाल तैयार होकर शहर का पहरा देना शुरू किया। जब वह एक गली में जा रहा रहा था, चोर ने जवाब दिया, ″मैं चोर हूँ”। कोतवाल समझा कि कोई उसके साथ मजाक कर रही है। उसने कहा, मजाक छोड़ो और अगर तुम चोर हो तो मेरे साथ आओ। मैं तुम्हें काल कोठारी में डाल दूंगा। चोर बोला, “ठीक है।” और वह कोतवाल के साथ काल कोठारी वाले जगह पर पहुँचा।

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वहाँ जाकर चोर ने कहा, कोतवाल साहब, इस काल कोठारी को आप इस्तेमाल कैसे किया करते हैं, मेहरबानी करके मुझे समझा दीजिए। कोतवाल ने कहा, तुम्हारा क्या भरोसा! मैं तुम्हें बताऊं और तुम भाग जाओं तो? चोर बोला, आपके बिना कहे मैंने अपने को आपके हवाले कर दिया है। मैं भाग क्यों जाऊंगा? कोतवाल उसे यह दिखाने के लिए राजी हो गया कि काल कोठारी में किसी को कैसे डाला जाता है। ज्यों ही उसने अपने हाथ-पैर उसमें डाले कि चोर ने झट चाबी घुमाकर कोठरी का ताला बंद कर दिया और कोतवाल को राम-राम करके चल दिया।

जाड़े की रात थी। दिन निकलते-निकलते कोतवाल मारे सर्दी के अधमरा हो गया। सवेरे जब सिपाही बाहर आने लगे तो उन्होंने देखा कि कोतवाल काल कोठारी में फंसे पड़े हैं। उन्होंने उनको उसमें से निकाला और अस्पताल ले गए।

अगले दिन जब दरबार लगा तो राजा को रात का सारा किस्सा सुनाया गया। राजा इतना हैरान हुआ कि उसने उस रात चोर की निगरानी स्वयं करने का निश्चय किया। चोर उस समय दरबार में मौजूद था और सारी बातें सुन रहा था। रात होने पर उसने साधु का भेष बनाया और नगर के सीमा पर एक पेड़ के नीचे धूनी जलाकर बैठ गया।

राजा ने गश्त शुरू की और दो बार साधु के सामने से गुजरा। तीसरी बार जब वह उधर आया तो उसने साधु से पूछा कि क्या इधर से किसी अजनबी आदमी को जाते उसने देखा है? साधु ने जवाब दिया कि वह तो अपने ध्यान में लगा था, अगर उसके पास से कोई निकला भी होगा तो उसे पता नहीं। यदि आप चाहें तो मेरे पास बैठ जाइए और देखते रहिए कि कोई आता-जाता है या नहीं। यह सुनकर राजा के दिमाग में एक बात आई और उसने फौरन तय किया कि साधु उसकी पोशाक पहनकर शहर का चक्कर लगाये और वह साधु के कपड़े पहनकर वहां चोर की तलाश में बैठे।

       आपस में काफी बहस-मुबाहिसे और दो-तीन बार इंकार करने के बाद आखिर चोर राजा की बात मानने को राजी हो गया ओर उन्होंने आपस में कपड़े बदल लिये। चोर तत्काल राजा के घोड़े पर सवार होकर महल में पहुंचा ओर राजा के सोने के कमरे में जाकर आराम से सो गया, बेचारा राजा साधु बना चोर को पकड़ने के लिए इंतजार करता रहा।

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सवेरे के कोई चार बजने आये। राजा ने देखा कि न तो साधु लौटा और कोई आदमी या चोर उस रास्ते से गुजरा, तो उसने महल में लौट जाने का निश्चय किया; लेकिन जब वह महल के फाटक पर पहुंचा तो संतरियों ने सोचा, राजा तो पहले ही आ चुका है, हो न हो यह चोर है, जो राजा बनकर महल में घुसना चाहता है। उन्होंने राजा को पकड़ लिया और काल कोठरी में डाल दिया। राजा ने शोर मचाया, पर किसी ने भी उसकी बात न सुनी।

दिन का उजाला होने पर काल कोठरी का पहरा देने वाले संतरी ने राजा का चेहरा पहचान लिया ओर मारे डर के थरथर कांपने लगा। वह राजा के पैरों पर गिर पड़ा। राजा ने सारे सिपाहियों को बुलाया और महल में गया। उधर चोर, जो रात भर राजा के रुप में महल में सोया था, सूरज की पहली किरण फूटते ही, राजा की पोशाक में और उसी के घोड़े पर रफूचक्कर हो गया।

अगले दिन जब राजा अपने दरबार में पहुंचा तो बहुत ही हैरान था। उसने ऐलान किया कि अगर चोर उसके सामने उपस्थित हो जाएगा तो उसे माफ कर दिया जायगा और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जायगी, बल्कि उसकी चतुराई के लिए उसे इनाम भी मिलेगा।

चोर वहां मौजूद था ही, फौरन राजा के सामने आ गया ओर बोला, “महाराज, मैं ही वह अपराधी हूं। इसके सबूत में उसने राजा के महल से जो कुछ चुराया था, वह सब सामने रख दिया, साथ ही राजा की पोशाक और उसका घोड़ा भी। राजा ने उसे गांव इनाम में दिये और वादा कराया कि वह आगे चोरी करना छोड़ देगा। इसके बाद से चोर खूब आनन्द से रहने लगा। “चोरी एक चोर की कलाकारी होती हैं।”

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