बाइबिल में ईसा मसीह द्वारा कही गई एक बहुत ही प्रसिद्ध और उपयोगी कहानी है “खोए हुए भेड़ की कहानी”। सच में अगर हमारे पास कोई 10 चीज है और उसमें से कोई एक खो जाए तो हमारा ध्यान बचे हुए नौ पर नहीं बल्कि खोए हुए 10वें पर अधिक होता है।
मनोवैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया। एक आलीशान होटल से लगे आलीशान स्विमिंग पूल में दुनिया की सबसे अच्छी किस्म का टाइल्स लगाया गया। पूल में प्रत्येक चीज, प्रत्येज सजावट त्रुटिहीन और सुंदर थी। केवल एक स्थान पर एक टाइल्स को जानबूझ कर नहीं लगाया गया था। आगंतुकों से पूल के विषय में अपने विचार लिखने के लिए कहा गया। आश्चर्य! अधिकांश लोगों ने पूल के सुंदरता की तारीफ नहीं की बल्कि उस छूटे हुए टाइल्स की शिकायत करते हुआ उसे ठीक करने का सुझाव दिया। इसे ही मनोवैज्ञानिकों द्वारा ‘मिसींग टाइल्स सिंड्रोम’ नाम दिया गया। इसे ‘ब्लैक डॉट’ थ्योरी भी कहते हैं जिसका अर्थ है एक बड़े सफ़ेद कागज पर अगर एक काला धब्बा (ब्लैक डॉट) हो तो ध्यान बड़े सफ़ेद कागज पर नहीं बल्कि छोटे काले धब्बे पर जाता है।
हम में से अधिकांश के सोचने का तरीका ऐसा ही होता है। किसी छोटी बुरी चीजों में हम ऐसे उलझ जाते हैं जिससे बहुत सारी अच्छी चीजों पर हमारा ध्यान नहीं जाता और हम उसका आनंद नहीं ले पाते हैं।
एक पुरानी कहानी है। एक दिन एक लड़की ने फूल का एक बेल लगाया। उस फूल की सुंदरता की तारीफ सुन कर उसने बड़े उत्साह से वह बेल लगाया था। लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी उसे उस बेल में कोई फूल नहीं दिखा। एक दिन वह गुस्से से उसे काट डालने के लिए गई। तभी दीवार के उस तरफ रहने वाली उसकी पड़ोसन उसे मिली और इतने सुंदर फूलों के लिए उसे धन्यवाद दिया। लड़की को बात समझ नहीं आई। पड़ोसन के कहने पर जब वह दीवार के उस तरफ गई तो चौंक गई। क्योंकि उसके लगाए बेल की डाली दीवार के उस तरफ चली गई थी और उस पर बहुत ही सुंदर फूल खिले थे। दीवार के उस पार से फूलों से भरा हुआ वह बेल बहुत सुंदर लग रहा था। कई बार हम ‘दीवार के उस पार’ नहीं देख पाने के कारण भी अपने कार्यों और जीवन की अन्य सुंदरता को देख नहीं पाते हैं।
भगवान महावीर की मूलभूत शिक्षाओं में से एक है ‘सम्यक स्मृति’। हम हमेशा कुछ न कुछ सोचते-विचारते रहते हैं। लेकिन यह सोच कैसी होती है, कभी उसके प्रति बहुत ध्यान नहीं देते। सम्यक स्मृति कहती है हम अपने शारीरिक कार्यों के प्रति ही नहीं बल्कि मानसिक विचारों के प्रति भी सचेत रहें।
शास्त्रों में इन 17 मानसिक अवस्था को महापाप कहा गया है क्योंकि ये अन्य शारीरिक पापों के कारण बनते हैं। ये हैं- काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्या, मान, मद (मान का ही अधिक उग्र रूप), शोक, चिन्ता, उद्वेग, भय, अत्यधिक हर्ष, विषाद, अभ्यसूया या असूया (छिद्रान्वेषण के स्वभाव के कारण दूसरे के गुणों को भी दोष बताना), दैन्य, मात्सर्य (दूसरों के गुणों के स्वीकार नहीं कर पाना) और दम्भ। आयुर्वेद इन्हें मानसिक विकार की श्रेणी में रखता है। आधुनिक मनोविज्ञान भी इन्हे रोग कारक मानता है। वास्तव में ये सभी स्वाभाविक मानसिक अवस्था हैं। लेकिन एक सीमा से अधिक बढ़ने के बाद ये विकार या रोग का रूप ले लेते हैं। यह सीमा रेखा इतनी सूक्ष्म होती है कि जब हम किसी तरह के विचार में लीन हो जाते हैं तो पता ही नहीं चलता यह सीमा रेखा पर पार हो गई।
ये विचार हमारे पारिवारिक, सामाजिक और व्यावसायिक जीवन के साथ-साथ स्वयं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है। हम दूसरों को भी दुखी करते हैं और स्वयं भी दुखी रहते हैं। इसलिए क्यों न हम महावीर के सम्यक स्मृति के महत्व को समझे। क्यों न अपनी सोच को एक ऐसी दिशा दें जो हमारे और हमारे अपनों के लिए सुखद हो। वास्तव में, सोचना भी एक कला है। एक ऐसी कला जो हमारे जीवन में खुशियाँ भरती है। तो क्यों न हम उस कला को अपने अंदर विकसित करें।