खुशियों की चाबी

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है मानव जनम बहुत पुण्य के पश्चात मिलता है। मानव जीवन में ही मनुष्य मनचाहा लक्ष्य साध कर अपनी प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, परमार्थ और जनकल्याण के अच्छे कार्यों को करते हुए अपने जीवन को सार्थक करने का सौभाग्य केवल मानव को ही मिला है। हमारे द्वारा की गई छोटी सी मदद् किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सकती है। अपनी रुचि के अनुरूप कला से जुड़ने का, ज्ञान प्राप्त करने का लाभ भी मानव को मिला है नृत्य, संगीत, चित्रकारी, लेखन, पठन यह सारी कलाएँ हमारे व्यक्तित्व विकास में सहायक तो है ही साथ ही हमारे लिए खुशियों ‌के द्वार भी इनके माध्यम से खुलते है और निरर्थक बातों में उलझने से हम बचे रहते है, क्यों कि जैसे ही हमें अवकाश मिलता है हमारी पसंदीदा कला आकर हमारे हृदय पटल का द्वार खटखटाने लगती है और हम उसमें खो जाते हैं।

राजश्री राठी
गौरक्षण रोड, महेश‌ कॉलनी, अकोला, महाराष्ट्र

  बमुश्किल मिले इस मानव जीवन को हम कितनी ही बार व्यर्थ में स्वयं को कष्ट देकर अवसाद की अवस्था में यूं ही गॅंवा देते है‌। कुछ समस्याएं अकस्मात जीवन में आती है जिन्हें वश में करना हमारे हाथों में नहीं रहता इन विपदाओं का मुकाबला हमें करना ही पड़ता है। हम अगर शांतचित्त होकर उन्हें सुलझाने का प्रयास करते हैं  तो कोई-न-कोई राह मिल ही जाती है। हमारे भाग्य के निर्माता हम स्वयं है, हमारे लिए सुख और दुःख का चुनाव भी हम स्वयं ही करते है। “स्वस्थ, सफल, समृद्ध जीवन तभी संभव होगा जब हम अपने आप को खुश रखना सीख जाएँ।” स्वयं को खुश रखने की प्रक्रिया हमारे ही हाथों है बस जरूरत है थोड़े प्रयासों के साथ दृढ़विश्वास की और हमें अपने लिए अच्छे एवं सकारात्मक विचारों का चुनाव करने की।

  जिस तरह किसी पौधे को अच्छा खाद-पानी मिलता है तो उससे अमृततूल्य फल प्राप्त होते है, उस पौधे का किटाणुओं द्वारा नाश न हो इसलिए हम समय-समय पर कीटनाशक औषधियों का उपयोग करते रहते हैं। पौधे की तरह हमें भी सावधानी बरतनी होगी अपने  मन‌, बुध्दि को दीमक लगाकर खराब करनेवाली बातों से दूर रखना होगा। अपनी इच्छा शक्ति को सही दिशा में प्रबल रखते हुए आगे बढ़ने का निश्चय करें।

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  सर्वप्रथम हमें अपने विचार शक्ति को सकारात्मक रखने की आदत डालनी होगी। एक बात के कई पर्याय हमारे हाथों में है, चुनाव हमें करना है जीवन के सफर में चलते हुए कई बार हमें पग-पग पर निर्णय लेना पड़ता है। अपने घर के लिए कोई वस्तु, स्वयं के लिए ड्रेस, बच्चों के लिए स्कूल आदि अनेक ऐसी चीजें है जिस समय हम सर्वोत्तम पर्याय ही चुनते हैं और हमारे द्वारा किया गया गुणवत्ता युक्त चुनाव हमें अत्याधिक प्रसन्नता और सुकून देता है। जब निर्जीव वस्तु हमें इतना संतुष्ट कर सकती हैं तो सोचिए हमारे मस्तिष्क को हम हमेशा अच्छे सकारात्मक सोच की भेंट देते रहे तो वह कितना प्रसन्न रहेगा।

  जब हम खुश रहेंगे तो हमारे लिए प्रगति के द्वार खुद-ब-खुद खुलते जाएंगे। प्रसन्नचित्त होकर किया जानेवाला हर कार्य सही दिशा में अग्रसर हो लक्ष्य को प्राप्त करेगा। तो क्यों न हम संकल्प करेंक कि  नकारात्मकता को हम कभी स्वयं पर हावी नहीं होने देंगे और न ही स्वयं को आहत करेंगे।

  प्रायः देखा जाता है मानव अपने सभी बहुमूल्य  भौतिक संसाधनों को बड़े ही हिफाजत से रखते हैं। लॉकर,  घर में रखी गई तिजोरी, वाहनों की चाबी, घर सभी निर्जीव वस्तुओं की चाबी अपने पास बड़े ही जतन से सुरक्षित रखते हैं, ताला लगाने के पश्चात भी उसे खींचकर देखने की मानसिकता बनी रहती ‌है कि कहीं कोई भूल ना हो जाए। पूरी सावधानी बरती जाती है, यहॉं  तक की घर के सदस्यों को भी चाबी देते हैं तो काम होने पर तुरंत वापस ले लेते हैं। भौतिक संसाधनों के प्रति मोह होना, यह स्वाभाविक प्रक्रिया है किंतु सोचा जाये तो‌ क्या यह संसाधन हमारे जीवन से, हमारी भावनाओं से अधिक महत्त्वपूर्ण ‌हैं? 

मानव की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से अधिक ‌मूल्यवान कुछ भी नहीं है, माना कि खुशहाल जीवनयापन हेतु सभी वस्तुओं ‌का होना भी महत्त्वपूर्ण है, लेकिन अपनी ‌मानसिक और शारीरिक अवस्था विचलित क्यों होती है, इसपर ‌गौर करना भी जरूरी है। हम अकसर‌ अपने मन रूपी ताले‌ की चाबी किसी और को सौंप देते हैं जबकि इस सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सजीव ताले की चाबी हमें अपने पास हिफाजत से रखनी चाहिए, पर होता ‌इसके विपरीत है। हम अपनी मानसिकता को किसी और के साथ जोड़ लेते हैं। किसी ‌ने हमें जरा भी आहत किया, हम मन ही मन उस विषय-वस्तु में अपने आपको ले जाते हैं, मन में बार-बार वही दुःख देने वाली बात का मनन-चिंतन कर स्वयं को तकलीफ देते हैं।

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कभी कोई निकटस्थ व्यक्ति जिसके प्रति हमारे मन में अत्याधिक लगाव हो, हमारी संवेदनाएं उससे जुड़ी रहती हैं, हम उससे बहुत से अपेक्षाएँ रखते हैं। जब वह पूर्ण नहीं होती तो हमें गहरी चोट लगती है कुछ प्रसंगों के दौरान तो हम टूटकर बिखर जाते है। उदाहरण के तौर पर किसी व्यक्ति का जन्मदिन ‌होता है, वर्तमान दौर में तो जन्मदिन ने ‌एक छोटे ही सही पर उत्सव का रूप ले लिया। सैकड़ों की तादाद में फोन, बधाई संदेश, कुछ करीबी मित्र, रिश्तेदार मिलने और प्रत्यक्ष बधाई देने आते हैं, यह सब पाकर हमें खुश होना चाहिए और अपने दिन विशेष को यादगार बनाते हुए बधाई के महकते पुष्पों से हृदयपटल को महकाये रखना चाहिए। 

  खुशियों को पाने का कोई भी अवसर हमें गॅंवाना नहीं चाहिए। लेकिन कई बार हम खुश होने की जगह इस बात को लेकर दुःखी होते हैं कि अमुक व्यक्ति ने हमें बधाई नहीं दी, हमारा पूरा ध्यान वहीं केंद्रित रहता है, ऐसे में जो प्राप्त होता है उसका भी हम लुत्फ़ नहीं उठा पाते, हमें जिस व्यक्ति से अपेक्षा थी उसके बधाई ना देने के अनेक कारण हो सकते हैं कभी भूलवश,  कार्य की व्यस्तता के चलते या हो सकता उस व्यक्ति ‌के जीवन‌ में आपकी उतनी अहमियत ना हो जितनी आपने उसे दे रखी है, उसकी अपनी जीवनशैली है, विचारशैली है उसे अपने अनुरूप जीने की स्वतंत्रता  ‌है। हम किसी को अपनी ‌ इच्छापूर्ति के लिए बाध्य नहीं कर सकते।

  जीवन के सफर में चलते हुए अनेक ऐसी घटनाएं घटित होती है जैसे, कोई शुभ प्रसंग के आयोजन में हम जाते हैं आयोजन कर्ता को एकसाथ अनेक मेहमानों का स्वागत करना होता है, साथ ही अनेक ऐसे कार्य होते है जिन्हें लेकर उसे जागरुक रहना पड़ता है कम समय में अनेक दायित्वों का निर्वहन एक साथ करते हुए कहीं ना कहीं कुछ भूल हो जाती है और यह स्वाभाविक प्रक्रिया है। ऐसे में अगर वह व्यक्ति हमसे बात न कर पाये या हमारी आवभगत में कमी रह भी जाती है तो ऐसी छोटी-छोटी बातों में तिल का ताड़ बनाने के बजाय हमें सकारात्मक रवैया अपनाना चाहिए और सहयोग की भावना रखते हुए स्वयं चलकर आयोजन की खुले दिल से प्रशंसा करनी चाहिए किंतु होता इसके विपरित है। जीवन में कई ऐसे मोड़ आते है जब हम छोटी-छोटी बातों से विचलित हो जाते हैं जिसका परिणाम हमारे स्वास्थ्य पर होता है, जिसके चलते कभी शारीरिक तो कभी मानसिक व्याधियों को हम स्वयं आमंत्रण देते हैं जो कि अनुचित है। यह व्याधियाँ स्वयं के प्रगति की राह में बाधा बनती है।

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  जो प्राप्त है वह पर्याप्त है यह मानते हुए हरपल  ‌का भरपूर आंनद उठाना चाहिए जिससे हमारे भीतर ऊर्जा का संचार हो नवचेतना की ज्योत जगमगायेगी और‌ हम अपने दैनंदिन जीवन में चलनेवाली गतिविधियों को एकाग्रता से करने में सक्षम होंगे और आगे बढ़ने में कामयाब होंगे।

    जिंदगी का हर क्षण विशेष है, उसे गॅंवाना नहीं सार्थक करना होगा। “जिंदगी ना मिलेगी दोबारा” यह ध्यान रखें और अपनी खुशियों की चाबी किसी और को‌ ना सौंपे, वह अपने पास रखते हुए सदा खुश और खिलखिलाते रहिये। परिस्थितियॉं चाहे कितनी ही विपरीत हो, हमें हर परिस्थितियों को मात देते हुए आगे बढ़ना है, तभी सेहत भी स्वस्थ रह पायेगी और हमारा व्यक्तित्व सकारात्मक होगा तो सुखद हवा के झोंके खुद ब खुद चलकर हमारे जीवन का सफर खुशनुमा कर जायेंगे।

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