कोई बात नहीं (लघुकथा)

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भूषण खाना खाकर उठा। सोफे पर बैठकर मोजे को पहनने लगा। सुखिया समझ गयी कि आज उसे ड्यूटी जाने में देर हो गयी। बोली- “बारिश का मौसम है। बदली छा रही है। पता नहीं बेटा, कब और पानी गिर जाएगा।” भूषण एक थैले में कुछ रखा और चलने लगा।

टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’
व्याख्याता (अंग्रेजी)
घोटिया-बालोद (छत्तीसगढ़)

“रूको बेटा, इसे पहन लो, क्योंकि मौसम का कोई ठिकाना नहीं है। शायद तुझे सर्दी भी तो है।” कहते हुए सुखिया ने बाइक की डिक्की में रेनकोट को डाल दी। भूषण के चलने की आहट प्रतिभा के कानों पर पड़ी। झट से कमरे से बाहर आयी- “अजी…! अपना लंच बॉक्स तो रख लो। बड़े भुलक्कड़ हो गये हो आजकल।” कहते हुए तिरछी नजरों से मुस्कुरा दी। बाइक स्टार्ट करते भूषण पर सौम्या की नजर पड़ी। दौड़ कर आयी। मुस्कुरायी- “पापा जी, हेलमेट तो पहन लीजिए। आराम से जाइएगा, है ना।” एक विशेष संरक्षण तले भूषण घर से निकला।

शाम होते ही घर में भूषण का इंतजार होने लगा। बारिश बंद हो चुकी थी। आसमान भी साफ था। रात हो रही थी। सबको चिंता सताने लगी थी। तीनों दरवाजे से झाँक ही रहे थे कि एक बाइक आकर रुकी। भूषण था। घर में दाखिल हुआ। टेबल पर खाली लंच बॉक्स और सामानवाला थैला रखा। पैर से जूते सरकाते हुए कहने लगा- “माँ, आपके चश्मे की डंडी नहीं लगवा पाया। दरअसल मैं जल्दी में था, भूल गया और हाँ, प्रतिभा तुमने अपने कमर दर्द के लिए मूव्ह मंगवाया था ना… क्या हुआ कि लौटते समय मेरी बाइक स्पीड थी। मेडिकल स्टोर्स को कितने समय क्रॉस किया, मैं समझ नहीं पाया।” प्रतिभा ने किचन से सुन लिया। होमवर्क करती सौम्या को सुनाई दिया- “सौम्या बेटी, तेरी प्रोजेक्ट फाइल नहीं ला पाया। कल ले आऊँगा।” तभी अपनत्व भरा क्षम्य की ध्वनि तरंगे भूषण के कानों को स्पर्श करने लगी- “कोई बात नहीं बेटा, तू आ गया न बस…, छोड़ो न जी… कोई बात नहीं, कल ले आना मूव्ह को। ठीक है पापा जी, कोई बात नहीं, मैं स्कूल जाते समय खरीद लूँगी अपनी प्रोजेक्ट फाइल।”

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