वृद्धावस्था एक स्वाभाविक व प्राकृतिक घटना होती है। इस अवस्था में स्वत: ही अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह आवश्यक नहीं कि सभी की समस्यायें एक जैसी हो। इन सबके बावजूद वृद्धावस्था को आनन्ददायक बनाया जा सकता है और बनाने के अनेक तरीके भी हैं। लेकिन इसके लिये कम-से-कम एक उद्देश्य को लेकर मन स्थिर ही नहीं करना बल्कि पूरा करने की चेष्टा करते रहना आवश्यक है।

जय नारायण व्यास कॉलोनी
बीकानेर, राजस्थान
मैंने अपने जीवन काल में वृद्धावस्था में लोगों को तकलीफ पाते भी पाया है। अध्ययन करने पर पता चला कि वृद्धावस्था में [खासकर सेवानिवृत्त पश्चात] ऐसे लोग जो अपना समय केवल घूमने या सोने में या फिर टेलिविजन देखने में लगाते हैं वे आलसी हो जाते हैं। उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन पनप जाता है। घरवाले भी उनसे परेशानी महसूस करते हैं।
अब निम्न दो उदाहरण से आप समझ जायेंगे कि वृद्धावस्था में उद्देश्य ले जीने वाले कैसे अपनी जिन्दगी आनन्ददायक ही नहीं बल्कि सम्मानजनक बना पाने में सफल हो जाते हैं:
मेरे एक मामाजी सेवानिवृत्त होने के बाद शाम के समय छोटे बच्चों को इकट्ठा कर श्रीमद्भागवत गीता पढ़ाने लगे। शुरू बारहवें अध्याय से किया था। साथ ही उन बच्चों को ही नहीं बल्कि उनके माँ-बाप अर्थात घरवालों को बता दिया कि पूरे दिन में जब भी कुछ जानना हो, समझना हो सीधे सम्पर्क कर समझ लो।
इस तरह शुरू के ही तीस/चालिस दिन में वे सभी को बारहवां अध्याय कंठस्थ करा कर सभी के सामने बच्चों की बड़ाई इस प्रकार करते थे जिससे बच्चे प्रेरित होकर आगे और अध्याय पढ़ाने का आग्रह करने लगे। इस तरह उन्होंने सभी को सभी अध्याय कंठस्थ करवा कर जहां-जहां गीता प्रतियोगिता होती वहां उन्हें स्वयं लेकर जाते। इस तरह से न केवल उनका बल्कि मेरी मामीजी का भी पूरा वृद्धावस्था आराम से निकला। आदर-सम्मान भी बहुत मिलता था। हर आयोजन में सभी उनकी उपस्थिति सम्मानजनक मानते थे।
उपरोक्त से शिक्षा ले मैं भी अपने वृद्धावस्था में रचना सृजन के लिये प्रेरित हुआ क्योंकि मैं विद्यालय समय से ही थोड़ा बहुत लिखता तो था ही और कोरोना काल मेरे लिये वरदान साबित हुआ। हालाँकि बीते कई वर्षों से, अभी तक भी, कभी भी कोई अपनी समस्या लेकर आता है तो अपनी क्षमतानुसार उसका निराकरण करने की पूरी पूरी चेष्टा करता हूँ।
रचना सृजन के चलते आज हालत यह है कि समय कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता। दिमाग सक्रिय रहने से आलस्य से होने वाली बिमारियां हुई ही नहीं। इसके अलावा जब शाम को उद्यान में दोस्त कहिये या आस-पास रहने वाले पड़ोसी लोगों के बीच बैठता हूँ तब मेरी रचना पर उनकी जिज्ञासा का ज़बाब भी देना पड़ता है। साथ ही वे विषय भी सुझाते हैं और विस्तृत विवरण से मुझे अवगत भी कराते रहते हैं। इसके अलावा इन सबके चलते अनेक लोगों से जान पहचान भी हुई। और उनमें से अनेक अपने अपने क्षेत्र में महारत रखते हैं जिससे उनसे बहुत कुछ जानने व समझने के लिए मिल जाता है।
इसी तरह अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जैसे संगीत की कोई भी विधा में, बागवानी में, मोहल्ला पुस्तकालय संचालन में अर्थात जिसमें आपकी रुचि हो, महारत हो अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर अपने वृद्धावस्था को खुशहाल, सम्मानजनक, आनन्ददायक बना सकेंगे। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि आप अपने दोस्तों, पड़ोसियों विशेषकर परिवार के सभी सदस्यों के साथ ऐसा सामंजस्य बनायें जिससे वे न केवल आपको सब तरह से सहयोग करें बल्कि वे आपकी उपस्थिति सम्मानजनक समझ आपसे निवेदन करें कि आप उनके यहाँ आयोजित होने वाले हर मौके पर अवश्य उपस्थित रहें। इसके लिये आपको कुछ त्याग भी करना पड़े तो अवश्य करें।
सारांश यही है कि उद्देश्य प्रेरित जीवन वृद्धावस्था के लिये आवश्यक है। इसलिये जो अभी प्रौढ़ हैं उनको यही सलाह रहेगी कि वे आनन्ददायक, खुशहाल व सम्मानजनक वृद्धावस्था जीने के लिये अभी से अपनी सोच, स्थान व समय के लिये प्रयासरत हों जाय।
****