भावना मयूर पुरोहित, हैदराबाद

आर्ट ऑफ थिंकिंग
अर्थात सोचने की कला। जैसी हमारी सोच वैसे हम!!!
आचार्य विनोबा भावे की एक लघुकथा याद करते है…
एक बार एक मानव चलते चलते, किसी वन में भटक गया। वह एक वृक्ष के नीचे बैठा गया था। उसे मालूम नहीं था कि वह एक कल्प वृक्ष था। इस वृक्ष के नीचे बैठकर जो सोचते हैं वही सच हो जाता है। उसने सोचा, “अरे! मैं भुखा हूँ, कुछ भोजन मिल जायेगा तो अच्छा है।” उसके आश्चर्य के बीच उनके मनपसंद भोजन की थाली उसके सामने आ गई!
फिर उसने सोचा, “अरे! इतना भारी भोजन किया है, थोड़ा आराम हो जाय तो कितना अच्छा हो!” उसके आश्चर्य के बीच उसके लिए कंबल तकिया और गद्दी चद्दरवाली चारपाई आ गई। अच्छा आराम हो जाने के बाद उसने सोचा, “अरे! यहाँ भूत आ जाय तो? उसके सोचने की देर थी। सचमुच हू… हू… हू… करता एक भूत वहाँ पर आ गया! फिर उसने सोचा, “ओ बाप रे! यह भूत मुझे खा जायेगा तो?” भूत उसको खा गया!
इसिलिए कहते है जैसा हम सोचते हैं वैसे हम हो जाते है। हमें सदा सकारात्मक सोच रखने की कला में माहिर होना चाहिये।
वडोदरा के राजा निसंतान थे। अपने उत्तराधिकारी के लिए उन्होने बहुत सारे बच्चों को बुलाया। सभी को पूछा गया कि आप यहाँ क्यों आए हो? सभी ने अलग-अलग जवाब दिया। जब सयाजी गायकवाड़ को पूछा गया तो उन्होने कहा, “मैं यहाँ राजा बनने के लिए आया हूँ।” मंत्रीमंडल और राजा ने मिलकर उसे ही उत्तराधिकारी धोषित कर दिया।
यह था अच्छी सोच सोचने की कला का परिणाम।
एक बार एक रामकथा में भगवान श्रीराम और सीता मैया के दांपत्य जीवन की कथा चल रही थी। रामजी कहते है, मैं प्रतिपल सीता-सीता कर रहा हूँ फिर मैं सीता हो गया तो हमारे दांपत्य जीवन का क्या होगा? गुरुजी ने कहा कि कुछ नहीं होगा क्योंकि सीता मैया प्रति पल राम राम करती है। यदि राम सीता हो जायेगें तो सीता माता राम हो जायेगी।
समापन में बस यही कहना है कि हमें आर्ट ऑफ थिंकिंग अच्छी बात सोचने की कला है। जो कि हर किसी को सीखनी चाहिए।
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