आधुनिकता की दौड़ में पीछे छूटते संस्कार

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“एक सोलह वर्ष के किशोर ने शराब पीकर गाड़ी से एक दंपति एवं उनके पांच वर्ष के छोटे बच्चे को कुचल डाला”

“जायदाद के लालच में एक बेटे ने अपनी मां को मौत के घाट उतार दिया”

डॉ सविता स्याल 

“विद्यालय में छोटी सी बात पर झगड़ा इतना बढ़ गया कि एक छात्र ने चाकू मारकर अपने सहपाठी को घायल कर दिया।”

आए दिन समाचार पत्रों में दिल दहला देने वाले समाचार पढ़ने को मिलते हैं, जो यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि आधुनिकता की इस दौड़ में कहीं संस्कार पीछे तो नहीं छुटते जा रहे? संस्कार विहीन युवा जो देश के भावी नागरिक भी हैं देश और समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाते हैं।

इसके प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अनेक कारण हो सकते हैं:

माता-पिता का बच्चों को समय न देना

अधिक से अधिक धन कमाने की लालसा बढ़ती  ही जा रही है। बड़े-बड़े फ्लैटों और बड़ी-बड़ी गाड़ियों के सपने देखने वाले आधुनिक अभिभावक बच्चों को महंगे खिलौने एवं सुख सुविधाएं तो दे सकते हैं परंतु उन्हें ‘क्वालिटी टाइम’ नहीं देते।

उचित अनुचित का ज्ञान देने के लिए शिक्षाप्रद बातें और कहानियों पर मोबाइल और टी०वी० हावी हो गए हैं। बच्चे मोबाइल पर गेम खेलना एवं टी०वी० पर कार्टून देखना पसंद करने लगे। बच्चों को ‘डे केयर’ अथवा कामवाली बाई के भरोसे छोड़कर माता-पिता अपने कर्तव्य की इतिश्री ही समझ लेते हैं।

संयुक्त परिवारों का स्थान एकल परिवारों द्वारा लेना

आजकल एकल परिवारों का चलन बढ़ गया है बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी द्वारा सुनाई गई शिक्षाप्रद कहानियों से दूर होते जा रहे हैं‌। बुजुर्गों को परिवार में साथ रखने की प्रथा लगभग समाप्त हो चुकी है। युवा दम्पति कुछ परिस्थितिवश और कुछ इसे अपनी आजादी में खलल समझते हुए घर के बुजुर्गों को अपने साथ नहीं रखना चाहते परिणामस्वरूप उनसे मिलने वाले मार्गदर्शन से बच्चे वंचित रहे जाते हैं।

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नैतिक शिक्षा विषय की समाप्ति

कभी विद्यालयों में नैतिक शिक्षा के नाम पर एक विषय पढ़ाया जाता था जिसमें अनेक शिक्षाप्रद कहानियों के माध्यम से उचित-अनुचित का ज्ञान दिया जाता था जो बच्चों के विवेक को पोषित करता था ‌अंग्रेजी माध्यम वाले प्राइवेट स्कूलों में ऐसा कोई अलग विषय नहीं पढ़ाया जाता बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूलों में भारतीयता एवं भारतीय संस्कृति पर फोकस कम और आधुनिकता के नाम पर ‘वेस्टर्न कल्चर’ का अधिक अनुकरण किया जाता है।

नई पौध जो हमारे आने वाले कल की आधारशिला है उन्हें संस्कार देने का दायित्व परिवार और समाज दोनों का है। संस्कारविहीन बच्चे बहुत जल्दी अपराध के मार्ग की ओर मुड़ जाते हैं इसके लिए अभी से सतर्क रहने की आवश्यकता है।

बड़ों का सम्मान, परोपकार, निःस्वार्थ सेवा एवं दूसरों के प्रति संवेदनशीलता समाज और देश के प्रति कर्तव्य, इन अमूल्य संस्कारों का उपहार यदि हम भावी पीढ़ी को दें तो यह एक स्वस्थ परिवार और समाज को जन्म देगा। साथ ही देश के विकास में सहायक होगा।

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