गिलास रख दीजिए (प्रेरक कहानी)

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एक प्रोफेसर ने अपने छात्रों को एक प्रयोग करने के लिए कहा। उन्होने  पानी भरा हुआ गिलास सभी छात्रों को पकड़ने के लिए कहा। छात्रों ने ऐसा ही किया। प्रोफेसर ने बहुत देर तक उन्हें वैसे ही रहने दिया। कुछ समय बाद छात्रों का हाथ दर्द करने लगा।

प्रोफेसर ने छात्रों से पूछा गिलास या पानी का वजन बढ़ा है क्या? छात्रों ने कहा नहीं। प्रोफेसर ने फिर पूछा जब रखा था तब हाथ दर्द हुआ था क्या? छात्रों ने कहा नहीं। प्रोफेसर ने फिर पूछा “अगर दिन भर इस ग्लास को रखोगे तो क्या होगा? छात्रों ने कहा “पहले दर्द बढ़ेगा, दर्द हाथ से बढ़ कर गर्दन आदि तक भी पहुँच जाएगा। फिर हाथ सुन्न हो जाएगा।

अब प्रोफेसर ने पूछा “उतने ही वजन से इतना अलग-अलग प्रभाव क्यों होगा?” छात्रों ने कहा “समायावधि बढ़ने से।” अब प्रश्न था “यह दर्द कैसे ठीक होगा?” छात्र चुप रहे।

कुछ देर बाद प्रोफेसर ने कहा, “उत्तर सरल है। गिलास नीचे रख देने से।” अब प्रोफेसर साहब ने इसकी व्याख्या किया- “गिलास में बहुत कम वजन है। आप सब लोगों में इतनी शक्ति थी कि इसे आराम से उठा सकते थे। फिर भी ज्यादा देर रखने से धीरे-धीरे आप लोग शक्तिशाली होते हुए भी दर्द का अनुभव करने लगे। और ज्यादा देर रखने से और ज्यादा दर्द बढ़ा। वजन उतना रहने से भी समय बढ़ने से तकलीफ बढ़ने लगा। इसका अर्थ हुआ कि वजन ज्यादा देर रहने से दुखदाई हो गया। इसका एकमात्र उपाय है वजन नीचे रख देना।

यही हमारे जीवन के साथ भी होता है। हम कभी-कभी छोटी-छोटी चिंताओं, छोटी-छोटी दुखदायी कटु यादों को अपने मस्तिष्क में ज्यादा देर तक रखते हैं। अधिक देर रखना धीरे-धीरे वह हमारे लिए अधिक दुखदाई हो जाता है भले ही वह वजन अधिक नहीं हो। इस दुख से बचने का एकमात्र उपाय है कुछ देर बाद उस वजन को उतार देना। अर्थात जितनी जल्दी हम अपने कटु यादों और चिंताओं को अपने मस्तिष्क से हटा देंगे उतनी जल्दी हम इस कष्ट से मुक्त हो जाएंगे।  

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